एक गृहणी जब कलम
उठाती है
तो थोड़ा जलजला
आता ही है ,
कुछ भृकुटियां तन
जाती है ..
कलछी चलाने,
हिसाब लिखने वाली उँगलियों में
कलम कहाँ जचती है
भला किसी को ..
कुछ भडभड़ाहट ,
कुछ खड़बडाहट ,
कुछ झनझनाहट से
अक्सर उसका ध्यान
बंटाया जाता है ..
जब उसे ये आवाजें
भी मधुर लगने लगती है
तो छुपा दिया
जाता है ...
उसकी कलम कांच को
की किरचों में !
किरचें निकालते,
तलाशते हुए कलम को,
कुछ किरचे उसकी
उँगलियों में और
कुछ किरचों की चुभन उसके
ह्रदय को लगती है..
ह्रदय से रिसते लहू को
स्याही बना कर फिर से
लिखने लग जाती है ......
उठाती है
तो थोड़ा जलजला
आता ही है ,
कुछ भृकुटियां तन
जाती है ..
कलछी चलाने,
हिसाब लिखने वाली उँगलियों में
कलम कहाँ जचती है
भला किसी को ..
कुछ भडभड़ाहट ,
कुछ खड़बडाहट ,
कुछ झनझनाहट से
अक्सर उसका ध्यान
बंटाया जाता है ..
जब उसे ये आवाजें
भी मधुर लगने लगती है
तो छुपा दिया
जाता है ...
उसकी कलम कांच को
की किरचों में !
किरचें निकालते,
तलाशते हुए कलम को,
कुछ किरचे उसकी
उँगलियों में और
कुछ किरचों की चुभन उसके
ह्रदय को लगती है..
ह्रदय से रिसते लहू को
स्याही बना कर फिर से
लिखने लग जाती है ......
जिससे रिसते लहू को ,
ReplyDeleteवह स्याही बना कर फिर से
कलम से लगा कर लिखने
लग जाती है ......
बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,...
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...
Ati sunder upasna sakhi
ReplyDeleteकलछी बेलन वाले हाथों में कलम आती है तो समां बदलता ही है !
ReplyDeleteअच्छी कविता !
कलम लेकर भी कब कलछी , बेलन से कब दूर रहती है एक स्त्री !! ....पर कहाँ समझ आता है सबको
ReplyDeleteमुझको बहुत आश्चर्य होता है जब गंभीर विषय पर तुमको लेखनी चलाते हुए --देखते हैं हम प्रभावित हैं -----बहुत खूब उपासना जी ---...
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