Sunday, 29 April 2012

परायापन


अपने साथी को धुंधली नज़रों से चश्मा हटा कर
 अपने आंचल की कोर से आंसू पौंछते देख ,
दूसरा साथी अपने झुर्रियों भरे हाथों से
सर पर स्नेहिल स्पर्श रखते हुए ........
क्या आज भी आँखों में कुछ गिर गया या ...! 
आखों में क्या गिरना है अब ,
जब हम ही उनकी आँखों में खटकने लगे हैं .......
जिन मासूमो ने गोद को गीला किया था कभी ,
आज उनको मुझमे  ही गंध आने लगी है ......
जो कभी हमारी और प्यार से बाहें फैलाते आते थे 
उनकी ही आँखों में परायापन सा दिखता है ...
बहते आंसुओं से अब उसका आंचल भी
कम पड़ता लग रहा था .........

यादों की संदूकची

 फुर्सत में जब यादों की 
संदूकची खोली 
 कितने ही 
सुहाने पलों ने घेर लिया ...
दो छोटे -छोटे ,नन्हे -नन्हे हाथ 
पीछे से आकर गले में आकर 
झूल गए ...

कुछ खिलौने ,

कुछ कागज़ की कारों से बनी डायरी ,
कुछ  कन्चे,
टूटा हुआ बैट और
टांग टूटा हुआ गुड्डा भी नज़र आया..


ये चमकीले से हीरे जैसे 
क्या है भला!
हाथ में लेकर देखा तो हंसी आगई ,
अरे, ये तो उन गिलासों के टुकड़े है
जिनको जोर से पटक कर 

दिवाली के पटाखे बना दिए थे ,
और ख़ुशी की किलकारी भी गूंजी कि 
 पटाखा बजा ...!
पटाखे बजने की ख़ुशी ,
आँखों के साथ -साथ
चेहरे पर भी नज़र आयी थी। 


कितने सारे  ये मेडल  

जो दौड़ में मिले था ,
 किसी कीमती हार से कम नज़र
नहीं आया मुझे ...

 साईकल पर या छोटी सी कुर्सी पर
बिठाने की जिद करती नज़र आई, 

वो शरारती  आँखे। 

और ये क्या है संदूकची में...!

 जो एक तरफ पड़ी है ...
गुलाबी ,चलकीली किनारी वाली
छोटी सी एक गठरी। 


हाथों में लिया तो याद आया 

ये तो हसरतों की गठरी है ,
जरा सा खोल कर देखा तो 
एक नन्ही सी फ्राक ,
छोटी सी नन्हे -नन्हे 
घुंघरुओं वाली पायल नज़र आयी,
उनको धीमे से छू कर फिर से
संदूकची में रख दिया। 


और फिर बंद कर दिया
 धीमे से प्यार से यादों की संदुकची
को  ...!

Thursday, 19 April 2012

कुछ पल

कुछ पल  जो मिटटी में
दबा दिए थे मैंने ,
वो  अब  गुलाब बन कर
खिलखिलाने लगे हैं ...
कुछ पल जो  अपने आंचल में
बांध लिए थे मैंने,
वो अब कुछ सितारे बन
झिलमिलाने लगे हैं ...
कुछ पल जो अलगनी पर
 टांग दिए थे मैंने ,
वो अब मेरा घर -आँगन
महकाने लगे हैं ...

Tuesday, 17 April 2012

एक गृहणी की कलम

एक गृहणी जब कलम
 उठाती है
 तो थोड़ा जलजला
 आता ही है  ,
कुछ भृकुटियां तन
जाती है ..
कलछी चलाने, 

हिसाब लिखने वाली उँगलियों में 
कलम कहाँ जचती है
भला किसी को ..
कुछ  भडभड़ाहट ,
कुछ खड़बडाहट ,
कुछ झनझनाहट से
अक्सर उसका ध्यान
बंटाया जाता है ..
 जब उसे ये आवाजें
भी मधुर लगने लगती है
तो 
छुपा दिया
जाता है ...
उसकी कलम कांच को
की किरचों में !
किरचें  
निकालते,
तलाशते हुए कलम को,
कुछ किरचे उसकी
उँगलियों में और 

कुछ किरचों की चुभन उसके
ह्रदय को लगती है.. 


ह्रदय से रिसते लहू को

 स्याही बना कर फिर से 
 लिखने लग जाती है ......

Tuesday, 10 April 2012

अब हमें ना पाओगे

देखो अब जो रुठोगे 
तो हम न मनायेगें 
जहाँ जाना है जाओ 
हम न पुकारेंगे तुम्हें .........
थक गए हम भी 
पीछे -पीछे चलते ,
अब साथ चलना
है तुम्हारे .........
अब हमें इतना भी ना
आजमाओ ........
कभी मुड कर देखोगे
तो हमें ना पाओगे .......

उनका वादा



एक दिन मैं अचानक
पूछ बैठी अपने उनसे
की जो आपने वादा किया
वो तो पूरा ही नहीं किया ....
आपने कहा था कि
ताजमहल बनवाकर
दूंगा ,भूल गए क्या ....
वो बोले नहीं भुला नहीं हूँ
कल ही ला देता हूँ ......
और वादा पूरा भी कर दिया
ताजमहल आ भी गया
 —

Sunday, 8 April 2012

प्रेम


कहते हैं के जब कोई प्रेम
 में होता है तो 
उसे आसमान का रंग
 नीले से बैंगनी या गुलाबी 
नज़र आने लगता है ......
पर यह भी तो कहा जाता है 
के जब कोई प्रेम 
में होता है तो उसे कुछ भी 
नज़र नहीं आता ,
प्यार  अँधा होता है 
और  उसे अपने प्रिय के
 सिवाय कुछ भी तो दिखाई
 देता नहीं है
 तो फिर ये रंग ,कैसे भी हो
 क्या फर्क पड़ता है .........
वह तो बस अपनी आँखों में 
अपने प्रिय की छवि को बसाये 
पलके मूंदे रखता है ........
अँधा नहीं बनता वह,
 बस कहीं अपने प्रिय की छवि 
उसकी आँखों से दूर ना हो इसीलिए 
उन्हें मूंदे रखता है ........

Saturday, 7 April 2012

मैं

अक्सर तुम्हारे खयालों
में गुम हो जाती हूँ तो ,
ये देह मिट्टी हो जाती है
आँखों को पर लग जाते है 
मन पंछी बन उड़ जाता है ......

गुमान

उनको अपनी मुहब्बत
पर बहुत गुमान था ...
कहते है के , वो
हमारे प्यार में टूट
कर बिखर गए .........
काश के एक बार मुड के तो देखते
हम उनके प्यार में
ना टूट सके ,ना बिखर सके
बस पत्थर बन ,उनको जाते
 देखते रहे .........

Wednesday, 4 April 2012

इंतज़ार



नयनो में यह
 इन्तजार किसका है ,
नींद की जगह 
यह ख्वाब किसका है ......
कोई जाना -अनजाना
 सा साया किसका है ...............
अभी भी हर आहट पर
 इंतज़ार यह किसका है ........
किसी पुकार का इंतज़ार 
अभी भी किस का है ................

हम


वो कहते है कि

 हम रोये ही नहीं 

पलकों के किनारे 

भिगोए ही नहीं ...


उनको पलकों में 

छुपा रखा कर था ,

कहीं आंसुओं के साथ 

वो  भी -ना बह जाये 

इसीलिए हम

 रोये ही नहीं .......


वो कहते है कि

 किसको देखते हो

 ख्वाबों  में ...


 हम उन्हें क्या बताएं 

 ये नयन कब से

 खुले है उनके 

इंतज़ार में 

हम तो एक उम्र से 

सोये ही नहीं .........