Friday, 10 August 2012

कान्हा, तुम अब धरा पर मत आना


कान्हा ,
तुमने कहा था ....
जब भी धर्म की  हानि होगी ,
मैं इस धरा पर आऊंगा ...
पर तुम हो कहाँ पर 
नज़र ही नहीं आते ........
अगर आग्रह मानो मेरा ,
अब तुम धरा पर मत आना ...
बन पंगु इंसान 

 कब तक , 
आखिर कब तक 
किसी अवतार का तकेगा सहारा ......
तुम क्यूँ नहीं हर इन्सान में 
हिम्मत और प्रेरणा 
 बन  समा जाते ......

द्रोपदी का चीर तो  बढाया ,
पर 'का-पुरुषों' के
 विरुद्ध 
शस्त्र उठाना नहीं सिखाया 
अब हर युग में द्रोपदी ,
तुम्हारा ही सहारा तकती है ...

तुम क्यूँ नहीं दामिनी सी 
शक्ति बन समा जाते हर नारी में ...
अब तुम धरा पर मत आना ,
आना तो बस  विचार बन 
कर ही अवतरित होना ........

7 comments:

  1. आपके ब्लॉग पर आकर बहुत अच्छा लगा आपकी पोस्ट सराहनीय है सुन्दर अभिव्यक्ति..श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ BHARTIY NARI

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  2. आपके ब्लॉग पर आकर बहुत अच्छा लगा आपकी पोस्ट सराहनीय है सुन्दर अभिव्यक्ति..श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ BHARTIY NARI

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  3. विश्व में फैली अशांति के प्रति मन के उहापोह का सुन्दर विश्लेषण

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  4. अब हर युग में द्रोपदी ,
    तुम्हारा ही सहारा तकती है ...
    तुम क्यूँ नहीं दामिनी सी
    शक्ति बन समा जाते हर नारी में ......
    वाह कितना सुन्दर ख्याल है .....साभार !

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  5. बहुत सुंदर और आजकल का सच लिखा उपासना सखी ...

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  6. बहुत सुन्दर बात कही....
    कान्हा तुम शक्ति बन आना....

    शुभकामनाएं उपासना जी.

    अनु

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  7. द्रोपदी का चीर तो बढाया ,
    पर 'का-पुरुषों' के विरुद्ध
    शस्त्र उठाना नहीं सिखाया ...
    अब हर युग में द्रोपदी ,
    तुम्हारा ही सहारा तकती है ...

    ....बहुत सटीक और सुन्दर अभिव्यक्ति...

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