बना लीजिये
कैनवास ,
उदासियों की चादर को।
जेबों में भरे
चमकीले रंगो से
सजा दीजिये
उस पर
चाँद और तारे।
निहारिये
उस पर
चांदनी में नहाये
ऊँचे पहाड़
और
कल-कल बहती नदियाँ।
उकेरिये
आशाओं के
उम्मीदों के
सप्तऋषि ,
ग्रह -नक्षत्र भी।
छोटा ही है
उदासियों का कैनवास,
जैसे कोई
काली रात !
जरा सी देर और निहारिये ,
भोर का तारा
खुद ही टिमटिमाएगा,
खुद ही सज जायेगा
मन के रंगो से
सूरज की लालिमा से
बिना उकेरे ही।
छोटा ही है
ReplyDeleteउदासियों का कैनवास,
जैसे कोई
काली रात !
...बिलकुल सच...बहुत सुन्दर और प्रेरक प्रस्तुति...
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 6 दिसम्बर 2018 को प्रकाशनार्थ 1238 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
जो मज़ा इंतज़ार में है, वस्ले-यार में नहीं.
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है। ऐसे ही लिखते रहिए। हिंदी में कुछ रोचक ख़बरें पड़ने के लिए आप Top Fibe पर भी विजिट कर सकते हैं
Deleteआशा का दामन थामें सुंदर सार्थक रचना ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/12/99.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
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