कुछ सुखद
कुछ दुःखद
कुछ अनुकरणीय
खुरदरी -कठोर
अनुभवों की जमीन पर
जाता हुआ समय
छोड़ जाता है
पदचिन्ह अपने
समय के ये
पदचिन्ह
धुंधलाते नहीं
बिखरते नहीं
बे-रंग भी नहीं होते
कचोटते हैं
ह्रदय -तल को
अडिग -अविरल
लिए स्थायित्व।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, छाता और आत्मविश्वास “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteसमय तो बस समय ही हैं जो यादें छोड़ जाता हैं और लौट कर नहीं आता
ReplyDeleteशानदार रचना
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (25-08-2018) को "जीवन अनमोल" (चर्चा अंक-3074) (चर्चा अंक-2968) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हाँ ,छोड़ जाता है समय अपने पैरों के निशान.
ReplyDeleteसुन्दर पंक्तियाँ
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/08/84.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteसमय पर भाव भीनी भावाभिव्यक्ति सहज सटीक ।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
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