Thursday, 23 August 2018

समय के पदचिन्ह...

कुछ सुखद 
कुछ दुःखद 
कुछ अनुकरणीय 

खुरदरी -कठोर 
अनुभवों की जमीन पर 
जाता हुआ समय 

छोड़ जाता है 
पदचिन्ह अपने

समय के ये 
पदचिन्ह 
धुंधलाते नहीं 
बिखरते नहीं 
बे-रंग भी नहीं होते 

कचोटते हैं 
ह्रदय -तल को 
अडिग -अविरल 
लिए स्थायित्व। 






10 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, छाता और आत्मविश्वास “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. बहुत सुन्दर रचना

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  3. समय तो बस समय ही हैं जो यादें छोड़ जाता हैं और लौट कर नहीं आता
    शानदार रचना

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (25-08-2018) को "जीवन अनमोल" (चर्चा अंक-3074) (चर्चा अंक-2968) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. हाँ ,छोड़ जाता है समय अपने पैरों के निशान.

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  6. सुन्दर पंक्तियाँ

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  7. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/08/84.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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  8. समय पर भाव भीनी भावाभिव्यक्ति सहज सटीक ।

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  9. सुन्दर प्रस्तुति

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