अचानक ,
ख्याल आया ...
समय के रेले में
बढ़ते -बढ़ते ,
बहते-बहते ,
और
चलते -चलते ,
पता ही नहीं चला
मैं ,अपना ही
अस्तित्व खोती
ख्याल आया ...
समय के रेले में
बढ़ते -बढ़ते ,
बहते-बहते ,
और
चलते -चलते ,
पता ही नहीं चला
मैं ,अपना ही
अस्तित्व खोती
जा रही हूँ ........
ऐसे तो मैं ,
ऐसे तो मैं ,
एक दिन ,
समय की नदी में
बहती -बहती ,
लुढ़कती- लुढ़कती,
इसी की मिटटी में ही
मिल जाउंगी ....,
समय की नदी की
कल-कल और
लहरों की कोलाहल
मैं ही खोयी रही ,
कभी अपने अंतर्मन
की आवाज़
समय की नदी में
बहती -बहती ,
लुढ़कती- लुढ़कती,
इसी की मिटटी में ही
मिल जाउंगी ....,
समय की नदी की
कल-कल और
लहरों की कोलाहल
मैं ही खोयी रही ,
कभी अपने अंतर्मन
की आवाज़
मुझे सुनायी क्यूँ
नहीं दी ....
नदी की लहरों से
परे हट कर ,
जरा एक तरफ खड़े हो कर
देखा तो लगा ,
समय को रोक पाने की
हिम्मत तो नहीं है ,
पर कुछ पल तो
मैं अपनी
मुट्ठी में कर ही सकती हूँ...
जिन्हें कभी खोल कर देखूं
तो मुस्कुरा लूँगी........
नहीं दी ....
नदी की लहरों से
परे हट कर ,
जरा एक तरफ खड़े हो कर
देखा तो लगा ,
समय को रोक पाने की
हिम्मत तो नहीं है ,
पर कुछ पल तो
मैं अपनी
मुट्ठी में कर ही सकती हूँ...
जिन्हें कभी खोल कर देखूं
तो मुस्कुरा लूँगी........
समय को रोक पाने की
ReplyDeleteहिम्मत तो नहीं है ,
पर कुछ पल तो
मैं अपनी
मुट्ठी में कर ही सकती हूँ...
जिन्हें कभी खोल कर देखूं
तो मुस्कुरा लूँगी........
...बहुत सच कहा है..सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...
आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 22/09/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
ReplyDeleteमैं अपनी
ReplyDeleteमुट्ठी में कर ही सकती हूँ...
जिन्हें कभी खोल कर देखूं
तो मुस्कुरा लूँगी........
भाव पूर्ण सुंदर अभिव्यक्ति,,,,,,
RECENT P0ST ,,,,, फिर मिलने का
मुझे सुनायी क्यूँ
ReplyDeleteनहीं दी ....
नदी की लहरों से
परे हट कर ,
जरा एक तरफ खड़े हो कर
देखा तो लगा ,
समय को रोक पाने की
हिम्मत तो नहीं है ,
पर कुछ पल तो
मैं अपनी
मुट्ठी में कर ही सकती हूँ...
जिन्हें कभी खोल कर देखूं
तो मुस्कुरा लूँगी........
समय को किसने बांधे रखा है लेकिन आपका सपना पूरा हो पलों को संजो लीजिये अपने साथ शुभकामना
समय रुकता नहीं,पर कुछ लम्हें ठहरते हैं और कई एहसास देते हैं ...
ReplyDeleteकृपया मुझसे कॉन्टैक्ट करें rasprabha@gmail.com पर
ReplyDeleteमुट्ठी में पल कहाँ बाँधें हैं कभी .... खूबसूरत सोच
ReplyDeleteसुंदर कविता उपासना जी !
ReplyDeletekash hum sab aise ruk kar apne aap ko samajh pate...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति उपासना जी..
ReplyDeleteबेहतरीन :-)
पर कुछ पल तो
ReplyDeleteमैं अपनी
मुट्ठी में कर ही सकती हूँ...
जिन्हें कभी खोल कर देखूं
तो मुस्कुरा लूँगी........
kuchh pal apne liye ...sundar aur sarthak abhivyakti ...
shubhkamnayen ....!!
समय कभी किसी के लिए नहीं रुका ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteकुछ प्यारे पल अवश्य हमारी यादों में रहते हैं ....
ReplyDeleteसालों से जाने कितने दिन/तारीखें यूँ ही बहती आयी हैं ..... लिकिन इतने सालों मे ये जो तारीख है २६ सितम्बर को ये बहाव कुछ रुकता सा है ........है कोई जिसका ख्याल आता ही है !........, जन्म दिन कि हार्दिक शुभ कामनाएं .........
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