बना लीजिये
कैनवास ,
उदासियों की चादर को।
जेबों में भरे
चमकीले रंगो से
सजा दीजिये
उस पर
चाँद और तारे।
निहारिये
उस पर
चांदनी में नहाये
ऊँचे पहाड़
और
कल-कल बहती नदियाँ।
उकेरिये
आशाओं के
उम्मीदों के
सप्तऋषि ,
ग्रह -नक्षत्र भी।
छोटा ही है
उदासियों का कैनवास,
जैसे कोई
काली रात !
जरा सी देर और निहारिये ,
भोर का तारा
खुद ही टिमटिमाएगा,
खुद ही सज जायेगा
मन के रंगो से
सूरज की लालिमा से
बिना उकेरे ही।