Wednesday 28 September 2016

लिखा है मैंने एक आखिरी प्रेम गीत...

ज़िन्दगी की रात में
लिखा है मैंने ,
एक आखिरी प्रेम गीत।

अगर सुनाई दे
तुम्हें ,
तो सुन लेना !

इसे सुन ने की भी
एक शर्त है मगर !

किसी के कहने -सुनने से नहीं ,
अगर मन से सुनो तो ही
सुनना !

यह मेरा प्रेम गीत
नहीं सुनाई देगा
किसी हृदय हीन को !

ह्रदय तल के
आखिरी तल से ,
उभरी टीस से निकला
यह गीत
तुम्हें सुनाई दे .
तो ही सुनना।

जिंदगी की रात है अब ,
भोर का क्या मालूम
हो भी या नहीं।

भोर के तारे में
मेरा गीत ,
सुनाई दे तो सुन लेना।


10 comments:

  1. बहुत खूबसुरत रचना

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  2. बहुत खूबसुरत रचना

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  3. बहुत खूबसुरत रचना

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  4. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (30-09-2016) के चर्चा मंच "उत्तराखण्ड की महिमा" (चर्चा अंक-2481) पर भी होगी!
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. शब्दों का खूबसूरत चयन

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  6. प्रेम की गहरी अनुभूति से उपजे शब्द ... लाजवाब ...

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  7. बहुत ही उम्दा ..... बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति .... Thanks for sharing this!! :) :)

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