Thursday, 8 November 2012

एक औरत की वसीयत...

सोचती है एक औरत ,
जब वसीयत लिखने की ......

और सोचती है
उसकी क्या है विरासत
और क्या दे कर जाना है
उसको इस दुनिया को ...

जब उसका अपना कहने
को कुछ है ही नहीं ......
ना जमीन ना ही कोई
जायदाद ....

एक बोझ की तरह पैदा
होकर दुसरे पर भी बोझ
की तरह लादी गयी ,
एक औरत के पास
विरासत में छोड़ जाने को
क्या होगा भला ...!

कलम को अपने होठों में
दबा , वह मुस्कुरा पड़ती है ..

इस मुस्कुराहट में बहुत
कुछ होता है ,
कुछ समझ में आता है तो
कुछ समझना नहीं चाहती
और गहराती मुस्कुराहट
बहुत कुछ समझा भी जाती है ...

लेकिन . फिर भी वह
वसीयत तो करना चाहती ही है ...
वह चाहती है ...

जो आंसू , कराहटें , मायूसियाँ
उसने जीवन भर झेली ,
उनको कहीं दूर गहरे गड्ढे में दफना
दिया जाए या
किसी गहरे सागर में ही बहा दिया
जाए ....

वह नहीं चाहती उसकी आने वाली
पीढ़ी को यह सब एक बार फिर से
विरासत में मिले ...
.
वह सिर्फ और सिर्फ आत्मविश्वास
को अपनी विरासत में देकर जाना
चाहती है
क्यूँ की वही उसकी जीवन भर की
जमा -पूंजी है .......







30 comments:

  1. aur jo vasiyat aurat de jaati hai use dene ki takat kisi me nahi hai...........bahut pasand aayi aapki rachna

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत -बहुत शुक्रिया संध्या जी

      Delete
  2. very nice post with emotions and feelings

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत -बहुत शुक्रिया रमाकांत जी

      Delete
  3. very nice .......... main bhi sochne lagi hu ki kya likhu apni vasiyat main

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत -बहुत शुक्रिया नीलिमा जी ....

      Delete
  4. बहुत प्रेरक और सच को उजागर करती रचना !

    ReplyDelete
    Replies
    1. प्रतिभा जी बहुत -बहुत शुक्रिया ........

      Delete
  5. वह सिर्फ आत्मविश्वास ही देना चाहती है विरासत में !
    सच में !

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत -बहुत शुक्रिया वाणी जी .....

      Delete
  6. बेहद प्रेरणादाई रचना उपासना जी वाह बधाई स्वीकारें

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत -बहुत शुक्रिया अरुण जी

      Delete
  7. आत्मविश्वास से भरी प्रेरक रचना,,,,

    RECENT POST:..........सागर

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत -बहुत शुक्रिया धीरेन्द्र जी

      Delete
  8. आत्‍मविश्‍वास से जीती है ...
    और विरासत में आत्‍मविश्‍वास देकर जाना चाहती है
    बेहद सशक्‍त अभिव्‍यक्ति

    ReplyDelete
  9. आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 10/11/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत -बहुत शुक्रिया यशोदा जी

      Delete
  10. एक औरत वसीयत में अपने सरे संस्कार अपने बच्चों को दे के जाती है जो उम्र भर उनके साथ चलते है ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत -बहुत शुक्रिया इमरान अंसारी जी

      Delete
  11. सुंदर रचना के लिए बधाई

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत -बहुत शुक्रिया पूनम जी

      Delete
  12. सुन्दर भाव पूर्ण रचना मन को छु गयी |
    आशा

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत -बहुत शुक्रिया आशा जी ..

      Delete

  13. एक औरत अपना आत्मविश्वास, प्यार दे जाये तो इससे बड़ी विरासत कोई हो ही नहीं सकती
    दिवाली की शुभकामनाएं !!!


    मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    माँ नहीं है वो मेरी, पर माँ से कम नहीं है !!!

    ReplyDelete
  14. हर नारी अपनी वसीयत तय करती है और अपनी वसीयत मे अपने विचार,संस्कार,प्रतिमान,धेर्य यदि वो वसीयत करे तो इसे बड़ी बात क्या होगी.... इस से बड़ी जायदाद तो कुछ हो ही नहीं सकती बहुत अच्छा लिखा आपने। आपको बधाई उपासना जी

    ReplyDelete
  15. वाह खूबसूरत इस मन के अहसास



    दीवाली की बहुत बहुत शुभकामनाएँ

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत -बहुत शुक्रिया अंजू...... आपको भी दीपावली की बहुत -बहुत शुभकामनाये

      Delete
  16. सुन्दर अभिव्यक्ति ! उपासना

    ReplyDelete