सोचती है एक औरत ,
जब वसीयत लिखने की ......
और सोचती है
उसकी क्या है विरासत
और क्या दे कर जाना है
उसको इस दुनिया को ...
जब उसका अपना कहने
को कुछ है ही नहीं ......
ना जमीन ना ही कोई
जायदाद ....
एक बोझ की तरह पैदा
होकर दुसरे पर भी बोझ
की तरह लादी गयी ,
एक औरत के पास
विरासत में छोड़ जाने को
क्या होगा भला ...!
कलम को अपने होठों में
दबा , वह मुस्कुरा पड़ती है ..
इस मुस्कुराहट में बहुत
कुछ होता है ,
कुछ समझ में आता है तो
कुछ समझना नहीं चाहती
और गहराती मुस्कुराहट
बहुत कुछ समझा भी जाती है ...
लेकिन . फिर भी वह
वसीयत तो करना चाहती ही है ...
वह चाहती है ...
जो आंसू , कराहटें , मायूसियाँ
उसने जीवन भर झेली ,
उनको कहीं दूर गहरे गड्ढे में दफना
दिया जाए या
किसी गहरे सागर में ही बहा दिया
जाए ....
वह नहीं चाहती उसकी आने वाली
पीढ़ी को यह सब एक बार फिर से
विरासत में मिले ...
.
वह सिर्फ और सिर्फ आत्मविश्वास
को अपनी विरासत में देकर जाना
चाहती है
क्यूँ की वही उसकी जीवन भर की
जमा -पूंजी है .......
जब वसीयत लिखने की ......
और सोचती है
उसकी क्या है विरासत
और क्या दे कर जाना है
उसको इस दुनिया को ...
जब उसका अपना कहने
को कुछ है ही नहीं ......
ना जमीन ना ही कोई
जायदाद ....
एक बोझ की तरह पैदा
होकर दुसरे पर भी बोझ
की तरह लादी गयी ,
एक औरत के पास
विरासत में छोड़ जाने को
क्या होगा भला ...!
कलम को अपने होठों में
दबा , वह मुस्कुरा पड़ती है ..
इस मुस्कुराहट में बहुत
कुछ होता है ,
कुछ समझ में आता है तो
कुछ समझना नहीं चाहती
और गहराती मुस्कुराहट
बहुत कुछ समझा भी जाती है ...
लेकिन . फिर भी वह
वसीयत तो करना चाहती ही है ...
वह चाहती है ...
जो आंसू , कराहटें , मायूसियाँ
उसने जीवन भर झेली ,
उनको कहीं दूर गहरे गड्ढे में दफना
दिया जाए या
किसी गहरे सागर में ही बहा दिया
जाए ....
वह नहीं चाहती उसकी आने वाली
पीढ़ी को यह सब एक बार फिर से
विरासत में मिले ...
.
वह सिर्फ और सिर्फ आत्मविश्वास
को अपनी विरासत में देकर जाना
चाहती है
क्यूँ की वही उसकी जीवन भर की
जमा -पूंजी है .......
aur jo vasiyat aurat de jaati hai use dene ki takat kisi me nahi hai...........bahut pasand aayi aapki rachna
ReplyDeleteबहुत -बहुत शुक्रिया संध्या जी
Deletevery nice post with emotions and feelings
ReplyDeleteबहुत -बहुत शुक्रिया रमाकांत जी
Deletevery nice .......... main bhi sochne lagi hu ki kya likhu apni vasiyat main
ReplyDeleteबहुत -बहुत शुक्रिया नीलिमा जी ....
Deleteबहुत प्रेरक और सच को उजागर करती रचना !
ReplyDeleteप्रतिभा जी बहुत -बहुत शुक्रिया ........
Deleteवह सिर्फ आत्मविश्वास ही देना चाहती है विरासत में !
ReplyDeleteसच में !
बहुत -बहुत शुक्रिया वाणी जी .....
Deleteबेहद प्रेरणादाई रचना उपासना जी वाह बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteबहुत -बहुत शुक्रिया अरुण जी
Deleteआत्मविश्वास से भरी प्रेरक रचना,,,,
ReplyDeleteRECENT POST:..........सागर
बहुत -बहुत शुक्रिया धीरेन्द्र जी
Deleteआत्मविश्वास से जीती है ...
ReplyDeleteऔर विरासत में आत्मविश्वास देकर जाना चाहती है
बेहद सशक्त अभिव्यक्ति
शुक्रिया दीदी
Deleteआपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 10/11/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत -बहुत शुक्रिया यशोदा जी
Deleteएक औरत वसीयत में अपने सरे संस्कार अपने बच्चों को दे के जाती है जो उम्र भर उनके साथ चलते है ।
ReplyDeleteबहुत -बहुत शुक्रिया इमरान अंसारी जी
Deleteसुंदर रचना के लिए बधाई
ReplyDeleteबहुत -बहुत शुक्रिया पूनम जी
Deleteसुन्दर भाव पूर्ण रचना मन को छु गयी |
ReplyDeleteआशा
बहुत -बहुत शुक्रिया आशा जी ..
Delete
ReplyDeleteएक औरत अपना आत्मविश्वास, प्यार दे जाये तो इससे बड़ी विरासत कोई हो ही नहीं सकती
दिवाली की शुभकामनाएं !!!
मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है
माँ नहीं है वो मेरी, पर माँ से कम नहीं है !!!
हर नारी अपनी वसीयत तय करती है और अपनी वसीयत मे अपने विचार,संस्कार,प्रतिमान,धेर्य यदि वो वसीयत करे तो इसे बड़ी बात क्या होगी.... इस से बड़ी जायदाद तो कुछ हो ही नहीं सकती बहुत अच्छा लिखा आपने। आपको बधाई उपासना जी
ReplyDeletethank u very much Soniya ji ...
ReplyDeleteवाह खूबसूरत इस मन के अहसास
ReplyDeleteदीवाली की बहुत बहुत शुभकामनाएँ
बहुत -बहुत शुक्रिया अंजू...... आपको भी दीपावली की बहुत -बहुत शुभकामनाये
Deleteसुन्दर अभिव्यक्ति ! उपासना
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