रोज़ चाँद को निहारना
उसका इंतजार करना
जैसे तुम्हारे आने की ही
राह ताकना
जिस दिन
चाँद नहीं आता
फिर भी वो दिशा निहारती हूँ
उस दिन ,
मालूम है यहाँ नहीं तो
कहीं न कहीं तो निकला ही होगा
चाँद ,
दुनिया का कोई तो कोना
उसकी चांदनी से रोशन तो होगा ही
तुम भी चाँद की तरह ही तो हो
ना मालूम ,
मैं
चाँद की राह ताकती हूँ या
तुम्हारी ,
चंद्रमा की बढती-घटती कलाओं के साथ
झूलती रहती हूँ
आशा -निराशा का हिंडोला ,
फिर भी वो दिशा निहारती हूँ
जिस राह से तुम कभी नहीं आओगे
चाँद तो अमावस के बाद आता है
और तुम !
शायद हाँ ?
पर शायद नहीं ही आओगे
फिर भी चाँद के साथ
इंतजार तो करती ही हूँ ....