Monday, 15 July 2024

इंतज़ार के पौरवे

आठ प्रहर सी
आठ उंगलियाँ

उंगलियों पर 
चौबीस घण्टे से पौरवें

कुछ- कुछ उंगलियाँ
रखती हैं
छब्बीस- सताईस पौरवे

सोचती हूँ कभी- कभी मैं
इंतज़ार वाली तकदीर लिए
रखती होगी
ये छब्बीस- सताईस पौरवे वाली
उंगलियाँ। 



Wednesday, 17 January 2024

मेरे जाने के बाद

मेरे जाने के बाद
चर्चा होगी
मेरे बारे में

कैसी थी मैं
क्या बोलती थी

सोचा क्या करती थी
ये तो पता नहीं भई

 सर पर लट्टू नहीं लगे थे न
रोशनी वाले 
जो मन का मीटर समझते
और जल जाते

मेरे जाने के बाद
ये भी चर्चा होगी
मैंने कैसे अंतिम सांस लिया
कितनी बार सांस अटका
कितनी बार  सांस खींचा.. 

काश कि 
मेरे जीते जी ही कोई
मेरी आँखो में झाँक कर
हाथों को थाम कर
पूछ लेता
कैसी हूँ मैं... 






Sunday, 15 October 2023

इंतज़ार और अभी..

रोज़ चाँद को निहारना 
उसका इंतजार करना 
जैसे तुम्हारे  आने की ही 
 राह  ताकना 

जिस दिन 
चाँद नहीं आता 
फिर भी वो दिशा निहारती हूँ
 उस  दिन ,
मालूम है यहाँ नहीं तो 
कहीं न कहीं तो निकला ही होगा 
चाँद ,
दुनिया का कोई तो कोना  
उसकी चांदनी से रोशन तो होगा ही 

तुम भी चाँद की तरह ही तो हो 
ना मालूम ,
मैं 
चाँद की राह ताकती हूँ या
 तुम्हारी  ,
चंद्रमा  की बढती-घटती  कलाओं के साथ 
झूलती रहती हूँ 
आशा -निराशा का हिंडोला ,
फिर भी वो दिशा निहारती हूँ 
जिस राह  से तुम कभी नहीं आओगे 
चाँद तो अमावस के बाद आता है 
और तुम ! 
शायद  हाँ ?
पर शायद नहीं ही आओगे 
फिर भी चाँद के साथ 
इंतजार तो करती ही हूँ  ....

Thursday, 26 January 2023

लोकतंत्र

एक लोकतंत्र चलता है

 मेरे घर में भी 
 ,
यहाँ भी राज अम्माजी का

और नाम पिता जी का चलता है ...


मैंने अपने उनको 

चुन कर 

अपने सर पर बैठा रखा है 


बच्चे भी 

विपक्ष की भूमिका खूब 

निभाते हैं,


बार -बार बॉय -काट 

की धमकी देते है !


..........
और मैं !


 बेचारी जनता की तरह 

कुछ शंकित -आशंकित 

थोड़ी भ्रमित सी 
,
कभी अन्ना की तरह 


अनशन करती

डोलती रहती हूँ 
 ,
पक्ष -विपक्ष के बीच में !



लेकिन 

मेरे  इस लोक तंत्र में

 खुशियाँ ही खुशियाँ है ,

हंसी और खिलखिलाहटे भी है !

 .................
 किये गए सभी वायदे


पूरे किये जाते है 


यहाँ जनता से ,

और विपक्ष भी सत्ता 

के आगे सर झुकाए रहता है !


 ...........
यहाँ  फायदा नहीं उठाता


कोई किसी का

मेरे इस लोक तंत्र में राज 


जनता का ही 

चलता है !

Tuesday, 20 September 2022

सुना है तुम चाँद पर रहने लगे हो..

सुना है तुम
चाँद पर रहने लगे हो

पूनम की रात को
छत पर
थाली में उतारूँगी चाँद 
तुम भी चले आना.. 


Wednesday, 12 January 2022

अगर मान सको तो..

जब भी तुम
कुछ सोचते हुए गुम हुए हो, 
उभरता है
ख्यालों के मध्य बिन्दु के पास
चमकता जो चंद्र बिन्दु 
वह मैं नहीं हूँ.. 
 
चंद्र बिन्दु जहाँ है
वहीं अच्छा है
मैं माथे की बिंदिया सी
ख्यालों का चंद्रबिंदु क्यूँ बनूं.. 

तुम्हें
तुम्हारे आस- पास जो
महकी सी हवा महसूस होती है
वही  हूँ मैं
अगर मान सको तो..

 


Thursday, 17 June 2021

तुमने कहा था

तुमने कहा था
एक दिन
मुझे अपने दिल में 
 रखना
अगर न रख सको
जीवन की तंग, 
संकरी गलियों में... 

क्या तुम ज्योतिषी हो
या
हो भविष्य वक्ता , 
तुम्हारा स्थान 
सच में ही है 
दिल के तिकोने वाले
हिस्से में.. 

कितना अच्छा हुआ न
तुमने जो चाहा था
वही मिल गया... 

जीवन की तंग,
अकेलेपन की संकरी गली
मुझे मुबारक ..