सरहद पर जब भी
युद्ध का बिगुल बजता है
मेरे हाथ प्रार्थना के लिए
जुड़ जाते हैं
दुआ के लिए भी उठ जाते हैं
सीने पर क्रोस भी बनाने
लग जाती हूँ ......
मेरे मन में बस होती है
एक ही बात
सलामत रहे मेरा अपना
जो सरहद पर गया है ,
लौट आये वह फिर से
यही दुआ होती है मेरे मन में ....
मैं कौन हूँ उसकी ...!
कोई भी हो सकती हूँ मैं
एक माँ
बहन ,पत्नी
या बेटी
उसकी जो सरहद पर गया है ......
इससे भी क्या फर्क पड़ता है
मैं कहाँ रहती हूँ
सरहद के इस पार हूँ या
उस पार ......
दर्द तो एक जैसा ही है मेरा
भावना भी एक जैसी ही है .......
हूँ तो एक औरत ही न ...!
युद्ध का बिगुल बजता है
मेरे हाथ प्रार्थना के लिए
जुड़ जाते हैं
दुआ के लिए भी उठ जाते हैं
सीने पर क्रोस भी बनाने
लग जाती हूँ ......
मेरे मन में बस होती है
एक ही बात
सलामत रहे मेरा अपना
जो सरहद पर गया है ,
लौट आये वह फिर से
यही दुआ होती है मेरे मन में ....
मैं कौन हूँ उसकी ...!
कोई भी हो सकती हूँ मैं
एक माँ
बहन ,पत्नी
या बेटी
उसकी जो सरहद पर गया है ......
इससे भी क्या फर्क पड़ता है
मैं कहाँ रहती हूँ
सरहद के इस पार हूँ या
उस पार ......
दर्द तो एक जैसा ही है मेरा
भावना भी एक जैसी ही है .......
हूँ तो एक औरत ही न ...!
दर्द तो एक जैसा ही मेरा,
ReplyDeleteभावना भी एक जैसी ही है ... बिल्कुल सच
आज 17- 11 -12 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete.... आज की वार्ता में ..नमक इश्क़ का , एक पल कुन्दन कर देना ...ब्लॉग 4 वार्ता ...संगीता स्वरूप.
उकेरे हैं आपने अपने अंतर्मन के सुन्दर भाव .......
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
इससे भी क्या फर्क पड़ता है
ReplyDeleteमै कहाँ रहती हूँ
सरहद के इस पार हूँ
या उस पार
दर्द तो एक जैसा ही है मेरा
भावना भी एक जैसी ही है
हूँ तो एक औरत ही न...
क्या बात है वंदना जी
बहुत सुंदर भावुक रचना ।