सुना है वह आजकल
बहुत गुनगुनाती है
हंसती भी बहुत है ....
सुना है वह
उडती तितलियों को
पकड़ने दौड़ पडती है
नंगे पाँव ही ...
सुना है उसे
अब देहरी लांघने से
भी संकोच नहीं होता ...
सुना है वह
अपने फैसले खुद ही
लेने लगी है ......
सुना है वह अब
सजी संवरी गुडिया या
कठपुतली की तरह
अपने सूत्रधारों के
वश में नहीं रहती ........
सुना तो बहुत कुछ है
वह आज-कल
'करैक्टर लेस' हो गयी है ....
शब्दों को
कानो में पिघले शीशे की
तरह सहन करती
मुस्करा पड़ती है वह .........
इस रंग बदली दुनिया में
' करेक्टर - लेस ' हो
या
करेक्टर से " लैस "........
बस सुना ही करती है वह ....
पकड़ने दौड़ पडती है
नंगे पाँव ही ...
सुना है उसे
अब देहरी लांघने से
भी संकोच नहीं होता ...
सुना है वह
अपने फैसले खुद ही
लेने लगी है ......
सुना है वह अब
सजी संवरी गुडिया या
कठपुतली की तरह
अपने सूत्रधारों के
वश में नहीं रहती ........
सुना तो बहुत कुछ है
वह आज-कल
'करैक्टर लेस' हो गयी है ....
शब्दों को
कानो में पिघले शीशे की
तरह सहन करती
मुस्करा पड़ती है वह .........
इस रंग बदली दुनिया में
' करेक्टर - लेस ' हो
या
करेक्टर से " लैस "........
बस सुना ही करती है वह ....
करेक्टर,,लेस हो या करेक्टर से लेश,,,,
ReplyDeleterecent post...: अपने साये में जीने दो.
करैक्टर लेस या करैक्टर से लैस
ReplyDeleteहोता है दोनों का बखान ...सही बात कही आपने
कहलावे एक कुख्यात औ दूसर विख्यात ये जान
स्वतन्त्र मर्यादित व्यवहार करैक्टर लेस नहीं होता
वैसे आज भी स्त्री का खुली हवाओं में सांस लेना
करैक्टर लेस की श्रेणी में रखा जाता है कहीं कहीं
इन्ही विवशताओं को सुन्दर ढंग से दर्शाया गया है
आपकी रचना में ..........बधाई
बहुत ही सुन्दर कटाक्ष।
ReplyDeletebahut sunder abhivykti....
ReplyDeleteaam maanskta samaj kee yuvtiyo ke le aisee hee hai
par ab shiksha ke sath samay badal raha hai........
BADE HI BEHATAREEN ANDAZ AUR THODA HATKAR SUNDAR PRASTUTI,
ReplyDeletebahut sunder bhaw or sarthak kehan man ko chhuti huai
ReplyDeletebahut hi sundar...
ReplyDeletebahut umda sarthak rachna......sacchyi yahi hai
ReplyDeleteस्त्री की आजादी को अब यही नाम दिया जाता है....करेक्टर-लेस ...इस कविता के माध्यम से एक कड़वी सच्चाई को उभारा है उपासना जी...लाजवाब..
ReplyDeletejiwan ko shabd de diye aapane
ReplyDeletesundar prastuti magar asanyamit jeewan shaili chahe stree ya purush kisi ki bhi ho usike liye hanikarak hoti hai aur samajik alochana ka bhay ek had tak aatm manthan ki prerana deti hai mere vichar se use poori tarah se nakarana bhi theek nahi.kyonki fishalan se savadhan ho jane se pathik girata nahi hai.
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