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Wednesday, 14 November 2012

ना जाने क्यूँ ..........

ना जाने कैसा बोझ है
जो सीने पर लिए
घूमा  करती हूँ ......
मुस्कराते चेहरों के पीछे
एक दर्द को तलाशती
रहती हूँ
ना जाने क्यूँ मुझे मुस्कराहटों
के पीछे कराहटें ही
सुनायी देती है ...
कुछ उलझने ,सुलझने की
बजाय और
उलझती ही क्यूँ नज़र आती है ...
यह कैसे मृगमरीचिका है
जिसकी तलाश में भटकी सी
फिरती हूँ .......
दोस्तों के चेहरों में
 ना जाने क्यूँ
दुश्मन नज़र आने लगते हैं ......
क्यूँ चेहरों के पीछे के चेहरों को
पहचानने  की कोशिश करती
रहती हूँ
जब की उतरते मुखौटे मुझे ही
डराते हैं ...
ना जाने क्यूँ
मैं भ्रम  में जीना ही नहीं चाहती ........
जब के कभी-कभी सच डरा भी
दिया करता है ...
फिर भी एक बोझ सा ही लिए घूमा
करती हूँ सीने पर
ना जाने क्यूँ ..........

8 comments:

  1. बहुत सराहनीय प्रस्तुति.
    बहुत सुंदर बात कही है इन पंक्तियों में. दिल को छू गयी. आभार !

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  2. मुस्‍कराते चेहरों के पीछे एक दर्द को तलाशती रहती हूँ ...
    गहन भाव लिये बेहतरीन अभिव्‍यक्ति

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  3. ख़ोज जारी रहे…अच्छी रचना !
    भावपूर्ण कविता है
    सुंदर भाव !
    सुंदर शब्द !
    आभार …

    बनी रहे त्यौंहारों की ख़ुशियां हमेशा हमेशा…

    ஜ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●ஜ
    ♥~*~दीपावली की मंगलकामनाएं !~*~♥
    ஜ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●ஜ
    सरस्वती आशीष दें , गणपति दें वरदान
    लक्ष्मी बरसाएं कृपा, मिले स्नेह सम्मान

    **♥**♥**♥**●राजेन्द्र स्वर्णकार●**♥**♥**♥**
    ஜ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●ஜ

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  4. सुन्दर प्रस्तुति!
    भइयादूज की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  5. बहुत सुन्दर .....इस 'क्यूँ' का कोई क्या जवाब दे :-))

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