ज़िन्दगी की रात में
लिखा है मैंने ,
एक आखिरी प्रेम गीत।
अगर सुनाई दे
तुम्हें ,
तो सुन लेना !
इसे सुन ने की भी
एक शर्त है मगर !
किसी के कहने -सुनने से नहीं ,
अगर मन से सुनो तो ही
सुनना !
यह मेरा प्रेम गीत
नहीं सुनाई देगा
किसी हृदय हीन को !
ह्रदय तल के
आखिरी तल से ,
उभरी टीस से निकला
यह गीत
तुम्हें सुनाई दे .
तो ही सुनना।
जिंदगी की रात है अब ,
भोर का क्या मालूम
हो भी या नहीं।
भोर के तारे में
मेरा गीत ,
सुनाई दे तो सुन लेना।
लिखा है मैंने ,
एक आखिरी प्रेम गीत।
अगर सुनाई दे
तुम्हें ,
तो सुन लेना !
इसे सुन ने की भी
एक शर्त है मगर !
किसी के कहने -सुनने से नहीं ,
अगर मन से सुनो तो ही
सुनना !
यह मेरा प्रेम गीत
नहीं सुनाई देगा
किसी हृदय हीन को !
ह्रदय तल के
आखिरी तल से ,
उभरी टीस से निकला
यह गीत
तुम्हें सुनाई दे .
तो ही सुनना।
जिंदगी की रात है अब ,
भोर का क्या मालूम
हो भी या नहीं।
भोर के तारे में
मेरा गीत ,
सुनाई दे तो सुन लेना।
बहुत खूबसुरत रचना
ReplyDeleteबहुत खूबसुरत रचना
ReplyDeleteबहुत खूबसुरत रचना
ReplyDeleteसुन्दर ।
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (30-09-2016) के चर्चा मंच "उत्तराखण्ड की महिमा" (चर्चा अंक-2481) पर भी होगी!
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह !
ReplyDeleteशब्दों का खूबसूरत चयन
ReplyDeleteप्रेम की गहरी अनुभूति से उपजे शब्द ... लाजवाब ...
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा ..... बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति .... Thanks for sharing this!! :) :)
ReplyDeleteBahut sundar
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