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Wednesday, 5 August 2015

कहाँ है मेरे पद चिन्ह !

अनुकरण करते -करते ,
पद चिन्हों पर
चलते -चलते
भूल ही गए अपने क़दमों की आहट।

मालूम नहीं था
एक दिन गुम हो जाना है
इस धरा में मिल  जाना है
बन कर मिट्टी।
या
विलीन हो जाना है
वायु में
बिना महक ,बिना धुँआ।

बस यूँ ही चलते ही गए
अनुगामी बन
ढूंढी ही नहीं कभी
अपनी राह।

 पैरों की रेखाएं ,
पद्म चिन्ह
सब  गुम हो गए ,
चलते -चलते
क़दमों पर कदम रखते।

आज मुड़ कर देखा
कहाँ है मेरे
पद चिन्ह !
उन्हें तो निगल गयी है
तपती धूप।





5 comments:

  1. आपकी इस पोस्ट को शनिवार, ०८ अगस्त, २०१५ की बुलेटिन - "पश्चाताप के आंसू" में स्थान दिया गया है। कृपया बुलेटिन पर पधार कर अपनी टिप्पणी प्रदान करें। सादर....आभार और धन्यवाद। जय हो - मंगलमय हो - हर हर महादेव।

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  2. आज मुड़ कर देखा
    कहाँ है मेरे
    पद चिन्ह !
    उन्हें तो निगल गयी है
    तपती धूप।
    .... बहुत सुन्दर
    सच हैं संघर्ष भरे राहों में चलते चलते अपनी खुद की पहचान खो बैठता हैं इंसान

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  3. बहुत सुन्दर

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  4. बहुत खूब .आभार इस बेहतरीन अभिव्‍यक्ति के लिए

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