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Monday 8 June 2015

मैं तुम्हारे साथ हूँ !

ख़ामोशी को खामोश 
समझना 
भूल हो सकती है। 

कितनी हलचल 
अनगिनत ज्वार भाटे
समाये होते है।


आँखों में समाई नमी
जाने कितने समंदर 

छिपाए होते हैं।

नहीं टूट ते यह समंदर
ज्वार -भाटे ,
जब तक कोई
कंधे को छू कर ना कहे
कि
मैं तुम्हारे साथ हूँ !

3 comments:

  1. सच है जरूरी हो जाता है कई बार एक स्पर्श जो अपनेपन का एहसास कराता है ...

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  2. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...

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