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Friday, 22 May 2015

एक चिराग मुहब्बत का ..


एक चिराग मुहब्बत का 
जो जलाया था हमने, 
ना बुझ पाया दुनिया की 
नफरतों की आँधियों से ...

हम मिले या ना मिलें कभी 
रहेगा जहाँ भी चिराग,
रोशनी देता रहेगा..!!







7 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (23-05-2015) को "एक चिराग मुहब्बत का" {चर्चा - 1984} पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
    ---------------

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  2. बहुत सुन्दर

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  3. वाह बेहतरीन भाव....

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  4. अच्छी भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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  5. बहुत सुन्दर भाव

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  6. रोशन रहे ये चिराग ...

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