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Wednesday, 30 April 2014

नन्हा..

मैं छोटा सा ,नन्हा सा
और माँ कहती है
प्यारा सा
  बच्चा हूँ

प्यारा सा बच्चा हूँ !
फिर भी
माँ स्कूल के
लिए जल्दी
जगा कर तैयार
करती !

पता नहीं ये स्कूल
किसने बनाया होगा
मुझे तो कुछ भी
समझ आता
उससे पहले ही
टीचर जी लिखा
मिटा देती है 

अब लिखा नहीं तो
कान भी मरोड़
देती है 
 लाल - लाल
कान लेकर घर
जाता हूँ तो
माँ आंसू भर के
गले लगा कर डांटती
है तो मुझे
अच्छा लगता है क्या !

जब मैंने माँ को बताया ,
आज नालायक बच्चों
को एक तरफ बिठाया
उनमें से मैं भी एक था ..

पूछ बैठा कि माँ
यह नालायक क्या होता है !
तो बस, माँ रो ही पड़ी ,
गले से लगा कर बोली
तुझे कहने वाले ही है रे
मेरे लाल !

मैं अब भी नहीं समझा 
टीचर जी ने ऐसा क्यूँ कहा.. 

8 comments:

  1. प्यारी कविता.....बच्चों के मन की कहती :)

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  2. माँ यशोदा की याद आ गई !

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  3. बाल सुलभ मन की मोहक बैटन को रचना में उतारा है .... बहुत खूब ...

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  4. प्यारी सी कविता..

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  5. बहुत सुंदर प्रस्तुति.
    इस पोस्ट की चर्चा, शनिवार, दिनांक :- 03/05/2014 को "मेरी गुड़िया" :चर्चा मंच :चर्चा अंक:1601 पर.

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  6. भावों से नाजुक शब्‍द......बेजोड़ भावाभियक्ति....

    Recent Post वक्त के साथ चलने की कोशिश

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  7. बहुत सुंदर भावभीनी कविता।

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  8. अबोध बालक के मन की व्यथा को उकेरती सुन्दर कविता

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