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Saturday, 19 April 2014

तुम अब कहीं नहीं

तुमने पूछा
तुम कहाँ हो !
तुम अब कहीं नहीं। 

तुम्हें भूले हुए
एक अर्सा हुआ
अब कोई याद बाकी नहीं। 

तुम्हें तो मैंने 
उसी वर्ष भुला दिया था 
जिसमे तेरहवां महीना था। 

जब फरवरी में 
तीसवीं तारीख आई थी। 

जिस वर्ष 
तीन सौ पैंसठ की बजाय 
तीन सौ सड़सठ दिन थे। 

फिर भी पूछते हो कि 
तुम कहाँ हो ?

13 comments:

  1. समय की ताक पर रिश्ते ...बहुत बढ़िया

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  2. वाह..बहुत भावपूर्ण रचना...

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  3. कितना असंभव है सब-कुछ!

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  4. बहुत सुंदर एवं भावपूर्ण रचना.
    नई पोस्ट : दहकते शोलों पर जिंदगी

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  5. भाव पूर्ण सुन्दर रचना..

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  6. रिश्ते ...
    कहाँ भूलते हैं पल ... बहुत ही भावपूर्ण ...

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  7. इस बार तो हद कर दी आपने ! ...... :-)

    किसी खोये हुए को, कहीं अस्तित्व मे होने का भान कराके .....

    उत्तम रचना, शुभकामनाएँ !

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    1. हार्दिक धन्य वाद जी ....क्या आप पहले भी मेरी रचनाये पढ़ते आये हैं ...अपना नाम भी बताते तो मुझे बहुत ख़ुशी होती ..

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    2. नाम तो एक सुविधा मात्र है पहचान के लिए, जो चाहे रख लें..... वैसे अनाम होना भी एक पहचान है ! ....... ,

      आपकी हर रचना का इंतज़ार रहता है .....

      कहते रहिए, हम उत्सुकता से सुन रहे हैं !.....

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  8. इतनी यादें... फिर भी सवाल. बहुत उम्दा, बधाई.

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  9. बहुत सुन्दर..
    दिल को छू गयी सचमुच...
    :-(

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