कुछ रिश्ते
जो तन के होते हैं
केवल
तन से ही जुड़े होते हैं
वे मन से कहाँ जुड़ पाते हैं
तभी तक साथ होते हैं वे
जब तक जुडी हैं मांसपेशियां
अस्थियों से
या फिर
अस्थि-मज्ज़ा में रक्त बनता है
तब तक ही शायद
यहाँ
हृदय धड़कता भी है तो
केवल
रक्त प्रवाहित करने के लिए
धड़कन से
जीवन चलता है
रक्त वाहिनियों को सजीवित करता हुआ
तन के रिश्ते
गँगा में बहा दिए जाते है
एक दिन अस्थियों के साथ ही
और आत्मा आज़ाद हो जाती है
एक अनचाहे पिंजरे से
और अनचाहे रिश्तों से भी
तन के बंधनो में नहीं बंधते ,
बन कर रिश्ते नहीं रिसते
पल-पल रक्त वाहिनियों में ही कभी ,
निराकार आत्मा
बिन अस्थियों ,
मांसपेशियों के ही जुड़ी रहती है,
विलीन हो जाती है
एक दूसरी आत्मा में
जहाँ पिंजरे की नहीं होती जरूरत
ना ही अनचाहे रिश्तों की ही