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Wednesday, 1 January 2014

समय के कलेंडर पर जो तारीख ठहर जाती है ..

कुछ घंटे
कुछ  प्रहर
कुछ दिन
और
दिनों से मिल कर
 बने महीने

महीनों ने मिल कर
साल बनाया
कितने साल गुज़रे
कितने कलेण्डर बदले
ऐसे ही जीवन बीता जाता है

कलेण्डर बदलते हैं
तारीखें भी बदल जाती है
लेकिन जब कभी
समय के कलेंडर पर
कोई  तारीख ठहर जाती है
वह 'तारीख़ ' बन जाती है





8 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    गये साल को है प्रणाम!
    है नये साल का अभिनन्दन।।
    लाया हूँ स्वागत करने को
    थाली में कुछ अक्षत-चन्दन।।
    है नये साल का अभिनन्दन।।...
    --
    नवल वर्ष 2014 की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 02-01-2014 को चर्चा मंच पर दिया गया है
    आभार 

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  3. आ० बहुत सुंदर , नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित
    नया प्रकाशन -: जय हो विजय हो , नव वर्ष मंगलमय हो

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  4. खुबसूरत अभिवयक्ति.....

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  5. सुन्दर प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति .. नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये :)

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  6. बहुत सुंदर ..शुभकामनायें आपको भी ....

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  7. Bahut sunder . Nav varsh ki mangal kamnayen.

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  8. अनुपम भावना बेहतरीन एहसास

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