यह पत्थर- पाषाण सी
दुनिया
पत्थर की दीवारें-मकान
यहाँ लोग क्यूँ -कर ना हो
पत्थर -दिल ....
कौन है मेरा
यहाँ किसे कहूँ मैं अपना
लहूलुहान हृदय मेरा
टकरा-टकरा इन पत्थरों से ...
रोता है
टकराता है
चूर - चूर नहीं होता
ना जाने क्यूँ .....
टकराकर पत्थरों -पाषाण हृदयों से
सबल-मज़बूत होता जाता
मेरा हृदय
मजबूर नहीं होता
न जाने क्यूँ .......
जानता है हृदय मेरा
तराशे जाएँगे ये पत्थर-पाषाण हृदय
एक दिन
एक मूरत में .....
नहीं होता
मूरत का हृदय , पाषाण सा
एक सोता बहता वहां भी
प्रेम का .........
पत्थरों के बीच पत्थर खोजना जो मूर्ति गढ़ी जा सके कठिन?
ReplyDeleteरमाकांत सिंह जी आपका हार्दिक धन्यवाद
Deleteबहुत सुंदर भाव पूर्ण अभिव्यक्ति,,,,उपासना जी ,,,
ReplyDeleterecent post: कैसा,यह गणतंत्र हमारा,
धीरेन्द्र जी आपका हार्दिक धन्यवाद
Deleteसुन्दर रचना।
ReplyDeleteइमरान अंसारी जी आपका हार्दिक धन्यवाद
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