Pages

Sunday, 27 January 2013

यह पत्थर- पाषाण सी दुनिया........


यह पत्थर- पाषाण सी
दुनिया
पत्थर की दीवारें-मकान
यहाँ लोग क्यूँ -कर ना हो
पत्थर -दिल ....

कौन है मेरा
यहाँ  किसे कहूँ मैं अपना

लहूलुहान हृदय  मेरा
टकरा-टकरा इन पत्थरों से ...
रोता है
टकराता है
चूर - चूर  नहीं होता
ना जाने क्यूँ .....

टकराकर पत्थरों -पाषाण हृदयों से
सबल-मज़बूत होता जाता
मेरा हृदय
मजबूर नहीं होता
न जाने क्यूँ .......

जानता है हृदय मेरा
तराशे जाएँगे ये पत्थर-पाषाण हृदय
एक दिन
एक मूरत में .....

नहीं होता
मूरत का हृदय , पाषाण सा
एक सोता बहता वहां भी
प्रेम का .........





6 comments:

  1. पत्थरों के बीच पत्थर खोजना जो मूर्ति गढ़ी जा सके कठिन?

    ReplyDelete
    Replies
    1. रमाकांत सिंह जी आपका हार्दिक धन्यवाद

      Delete
  2. बहुत सुंदर भाव पूर्ण अभिव्यक्ति,,,,उपासना जी ,,,

    recent post: कैसा,यह गणतंत्र हमारा,

    ReplyDelete
    Replies
    1. धीरेन्द्र जी आपका हार्दिक धन्यवाद

      Delete
  3. Replies
    1. इमरान अंसारी जी आपका हार्दिक धन्यवाद

      Delete