तुम्हारे साथ चला नहीं जाता
नहीं सहन होती अब मुझसे
तुम्हारी बेरुखी .......
ये बेरुखी मुझे लहुलुहान किये
दे रही है ,
कब तक पुकारूँ तुम्हें ,
जब हो मेरी हर पुकार ही अनसुनी ...
नहीं पुकारुगी तुम्हे
ना ही मुड़ ,थाम कर कदम देखूंगी ,
तुम्हारी तरफ कातर निगाहों से ......
तोड़ डाले हैं सारे तार
जो तुम संग जोड़े थे कभी
हर वह बात ,जो तुमसे जुडी थी ..........
यह जुडाव भी तो मेरा ही था
तुम थे ही कब मेरे ,
कब चले थे साथ मेरे ...
कुछ गीले क़दमों से साथ चले
और मैं साथ समझ बैठी ..
वो क़दमों का गीला पन तो कब का
धूप में घुल गया
मैं तलाशती रही वो कदमो के निशाँ .......
एक आस ,एक उम्मीद
जो तुमसे लगा कर रखी थी मैंने ,
जाओ आज मुक्त कर दिया तुम्हे
और मैं भी मुक्त ही हो गयी
तुम्हारी यादों से ,
तुम्हारे झूठे वादों से .....
बहुत ही बढिया …॥
ReplyDeleteबहुत -बहुत शुक्रिया भगत सिंह जी
Deleteबहुत ही सुंदर प्रस्तुति,,,,
ReplyDeleteखुदा की देंन है जिसको नसीब हो जाए
हर एक दिल को गमे-जाविदा नही मिलता,,,,
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recent post : नववर्ष की बधाई
बहुत -बहुत शुक्रिया धीरेन्द्र जी
Deleteउम्दा कलाम
ReplyDeleteबहुत -बहुत शुक्रिया नीलिमा जी
Deleteबहुत सुंदर ...तड़प भरी उम्मीद
ReplyDeleteबहुत -बहुत शुक्रिया रमा सखी
Deleteहम अपने गिर्द चंद शब्द बुन लेते हैं खड़े कर लेते हैं .इन शब्दों को अपने आस
ReplyDeleteपास से हटा दें
.ज़िन्दगी का ढर्रा बदल जाएगा ..........भुला दो मोहब्बत में हम तुम मिले थे ,के सपना ही समझो के मिलके चले थे .
बधाई सार्थक लेखन के लिए .
Virendra Sharma @Veerubhai1947
ram ram bhai मुखपृष्ठ http://veerubhai1947.blogspot.in/ शुक्रवार, 28 दिसम्बर 2012 अतिथि कविता :हम जीते वो हारें हैं
नव वर्ष में सब शुभ हो आपके गिर्द .
जीते वह हारे हैं , कैसे अजब नज़ारे हैं .... अधिक »
अतिथि कविता :हम जीते वो हारें हैं
ram ram bhaiपरVirendra Kumar Sharma - 6 मिनट पहले
अतिथि कविता :हम जीते वो हारें हैं -डॉ .वागीश मेहता हम जीते वह हारे हैं ................................... दिशा न बदली दशा न बदली , हारे छल बल सारे हैं , वोटर ने मारे फिर जूते , कैसे अजब नज़ारे हैं . (1) पिछली बार पचास पड़े थे , अबकी बार पड़े उनचास , जूते वाले हाथ थके हैं , हाईकमान को है विश्वास , बंदनवार सजाये हमने , हम जीते वह हारे हैं , कैसे अजब नज़ारे हैं .... अधिक »
thank u ji
Deleteberukhi का जवाब यही होता है
ReplyDeleteआपने सही कहा .......आभार
Deleteबहुत सुन्दर..
ReplyDeleteबहुत -बहुत शुक्रिया जी
Deletebahut sundar likha hai upasna
ReplyDeleteबहुत -बहुत शुक्रिया जी
Deleteबहुत ही शानदार पोस्ट ।
ReplyDeleteखुशी है कि नाराजगी काव्य रस बन बह रही है ....
ReplyDeleteऔर काव्य रस की चाशनी के तार आज भी बांधे हुए हैं ......
कहाँ है मुक्ति ?
आपने सही कहा .......आभार
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