मायके से विदाई की बेला के
साथ -साथ मन और आँखों
का एक साथ भरना और
एक -एक करके बिखरा सामान
सहेजना .........
बिखरे सामान को सहेजते हुए हर
जगह-कोने में ,अपना एक वजूद
भी नज़र आया,
जो बरसों उस घर में जिया था ..........
कुछ खिलौने ,कुछ पेन -पेंसिलें ,
कुछ डायरियां और वो दुपट्टा भी
जो माँ ने पहली बार सँभालने को
दिया था ..........
कुछ माँ की नसीहते और पापा की
हिदायतें भी .................
टांड पर उचक कर देखा तो एक
ऊन का छोटा सा गोला लुढक आया
साथ में दो सींख से बनी सिलाइयां
भी ,
जिस पर कुछ बुना हुआ था एक नन्हा
ख्वाब जैसा ,उलटे पर उलटा और
सीधे पर सीधा...........
अब तो जिन्दगी की उधेड़-बुन में
उलटे पर सीधा और सीधे पर उल्टा ही
बुना जाता है ...........
कुछ देर बिखरे वजूद को समेटने की
कोशिश में ऐसे ही खड़ी रही.......
पर कुछ भी समेट ना सकी और
दो बुँदे आँखों से ढलक पड़ी ............
साथ -साथ मन और आँखों
का एक साथ भरना और
एक -एक करके बिखरा सामान
सहेजना .........
बिखरे सामान को सहेजते हुए हर
जगह-कोने में ,अपना एक वजूद
भी नज़र आया,
जो बरसों उस घर में जिया था ..........
कुछ खिलौने ,कुछ पेन -पेंसिलें ,
कुछ डायरियां और वो दुपट्टा भी
जो माँ ने पहली बार सँभालने को
दिया था ..........
कुछ माँ की नसीहते और पापा की
हिदायतें भी .................
टांड पर उचक कर देखा तो एक
ऊन का छोटा सा गोला लुढक आया
साथ में दो सींख से बनी सिलाइयां
भी ,
जिस पर कुछ बुना हुआ था एक नन्हा
ख्वाब जैसा ,उलटे पर उलटा और
सीधे पर सीधा...........
अब तो जिन्दगी की उधेड़-बुन में
उलटे पर सीधा और सीधे पर उल्टा ही
बुना जाता है ...........
कुछ देर बिखरे वजूद को समेटने की
कोशिश में ऐसे ही खड़ी रही.......
पर कुछ भी समेट ना सकी और
दो बुँदे आँखों से ढलक पड़ी ............
खूबसूरती से लिखे खयाल ... मायके में आज भी वजूद की तलाश रहती है ।
ReplyDeletebahut -bahut aabhar sangeeta ji
Deleteबहुत ही अच्छा लिखा है आपने ... बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeletebahut -bahut aabhar sada ji
Deleteजब तक माँ है वहां मायका है, उसके बाद न मायका होता है, न वजूद के नामोंनिशां... बस याद आती है और दो बूँदें आँखों से ढलक पड़ती हैं... भावुक करती रचना
ReplyDeletebahut bahut aabhar sandhya ji
Deleteबहुत ही सुंदर ....अंदर तक छू गयी ....आंसू धूलक पड़े .....
ReplyDeletebahut -bahut aabhar rama sakhi....
Deleteजब-तक माँ है मायका,भूल गए सब वादे
ReplyDeleteअब सिर्फ बजूद बचा है,शेष रह गई यादे,,,,,
लाजबाब अहसासों की अभिव्यक्ति,,,,बधाई,,,, उपासना जी,,,
RECENT POST ...: जिला अनूपपुर अपना,,,
RECENT POST ...: प्यार का सपना,,,,
bahut -bahut aabhar dheerendra ji
Deleteकुछ देर बिखरे वजूद को समेटने की
ReplyDeleteकोशिश में ऐसे ही खड़ी रही.......
पर कुछ भी समेट ना सकी और
दो बुँदे आँखों से ढलक पड़ी
आपने आँखें गीली कर दीं मन को भिगोने वाली
bahut bahut aabhar ramakant ji
Deleteमर्मस्पर्शी .... हर स्त्री के मन के भाव ....
ReplyDeletebahut bahut shukriya monika ji
Deletevery emotional and deep writeup!!
ReplyDeletebahut bahut shukriya sumaya ji
Deleteनारी की अवशता को ,व्यतीत न होते अतीत को, और काटते कुरेदते चुभते असंगत वर्तमान को एक साथ अपने लिबास में लपेटे है वो चाहो तो कविता कह लो है ये बन गई है एक साधारणीकरण ,एक भाव विरेचन ,एक मुक्ति स्व : से स्व : की .अब मैं अलग हूँ और तू अलग ,मैं आज हूँ ,तू कल थी ,तेरा मेरा साथ कैसा ,ये खटराग कैसा .बहुत सशक्त रचना आईं हैं इस मर्तबा पुरानी नै हलचल आई है .
ReplyDeletebahut -bahut shukriya virendra ji ...aapke in shabdon ne mujhe bahut housla diya hai ...
Deleteबहुत सुन्दर रचना मायके कि याद दिलाती हुई
ReplyDeletebahut -bnahut shukriya sandhya ji
Deleteलाख सहेजो ...निकल ही पड़ते हैं ' दो आंसू '
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति
अंदर तक छू गयी आप की रचना , उपासना....बहुत ही सुंदर ...
ReplyDeletebahut -bahut shukriya mahashwari kaneri.......
Deleteबहुत सुन्दर..मन को छु लेनेवाली रचना...
ReplyDelete:-)
bahut -bahut shukriya reena ji
Deleteबहुत सुन्दर कोमल भाव ...
ReplyDeleteमायके कि याद दिलाती हुई सुंदर प्रस्तुति!
bahut - bahut shukriya kavita ji ...
Deletemain aapki bahut aabhari hun sangeeta ji
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत कविता ।
ReplyDeleteशायद यह बूँद हर लड़की की आँखों में से ढलकती है जिसे हम अक्सार देख, समझ नहीं पाते ...
ReplyDeleteमंगल कामनाएं !