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Saturday, 5 May 2012

उसका इंतज़ार

सुबह-सवेरे ही जब उसका

ख़याल आता है तो मुख 


पर मुस्कान और डर 


एक साथ आ जाता है .

....
मुस्कान उसके आने के लिए 


और डर उसके इंतजार के लिए ..


हर आहट में चौंक जाती हूँ ,

आँखे दरवाजे पर बिछाये बैठी

रहती हूँ उसके दीदार की चाहत में ...


कभी कड़ी धूप में भी सूनी राह


ताकते हुए उसका इंतज़ार करती


रहती हूँ ..


......
इंतज़ार की घड़ियाँ जब खत्म होती


है और उसकी एक झलक दिख जाती


तो मेरा मन करता है उसको पूजा की


थाली दिखाऊं या फूलो का हार पहनाऊं ,


पर मैं तो झाड़ू ही उठा लाती हूँ


और उसको पकड़ाते हुए,जैसे मुहं में


जैसे मिश्री घुली हुई हो ,बोल पड़ती हूँ


जा जल्दी से झाड़ू लगा ,मैं कडक सी


चाय बनाती  हूँ तेरे लिए ......

10 comments:

  1. कल 07/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  2. hahahahahahaha.............jawab nahi tumhara sakhi.....

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  3. स्वप्न से यथार्थ का सुंदर दृश्य परिवर्तन

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  4. :-)

    क्या शार्प टर्न मारा कविता ने.....................

    बहुत बढ़िया उपासना जी...

    सादर.

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  5. वाह...लाजबाब बहुत अच्छी प्रस्तुति,....उपासना जी

    RECENT POST....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....

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  6. ये भी जरूरी है .. जिससे काम करवाना हो उसे खुश रखना जरूरी है ..

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  7. क्या बात है बहुत खूब |

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  8. ek alag andaaz ki kavita very well written best wishes ....

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  9. सच में एक नया अंदाज की कविता..
    बहुत बढ़िया.....

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  10. :):)
    बहुत मजेदार...ये तो हर गृहणी की सुबह का वर्णन करता है.कविता में झाड़ू से अचानक आया मोड़ मजेदार है.

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