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Tuesday, 17 April 2012

एक गृहणी की कलम

एक गृहणी जब कलम
 उठाती है
 तो थोड़ा जलजला
 आता ही है  ,
कुछ भृकुटियां तन
जाती है ..
कलछी चलाने, 

हिसाब लिखने वाली उँगलियों में 
कलम कहाँ जचती है
भला किसी को ..
कुछ  भडभड़ाहट ,
कुछ खड़बडाहट ,
कुछ झनझनाहट से
अक्सर उसका ध्यान
बंटाया जाता है ..
 जब उसे ये आवाजें
भी मधुर लगने लगती है
तो 
छुपा दिया
जाता है ...
उसकी कलम कांच को
की किरचों में !
किरचें  
निकालते,
तलाशते हुए कलम को,
कुछ किरचे उसकी
उँगलियों में और 

कुछ किरचों की चुभन उसके
ह्रदय को लगती है.. 


ह्रदय से रिसते लहू को

 स्याही बना कर फिर से 
 लिखने लग जाती है ......

5 comments:

  1. जिससे रिसते लहू को ,
    वह स्याही बना कर फिर से
    कलम से लगा कर लिखने
    लग जाती है ......

    बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,...

    MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...

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  2. कलछी बेलन वाले हाथों में कलम आती है तो समां बदलता ही है !
    अच्छी कविता !

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  3. कलम लेकर भी कब कलछी , बेलन से कब दूर रहती है एक स्त्री !! ....पर कहाँ समझ आता है सबको

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  4. मुझको बहुत आश्चर्य होता है जब गंभीर विषय पर तुमको लेखनी चलाते हुए --देखते हैं हम प्रभावित हैं -----बहुत खूब उपासना जी ---...

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