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Saturday, 31 March 2012

भ्रम


कभी -कभी
मुझे लगता है
 तुम मेरे
आस -पास ही हो
और मैं तुम्हें
पहचान रही हूँ .......
 अक्सर होता है
ये भ्रम मुझे
शीशे के उस
पार तुम हो
मैं तुम्हें चाह कर भी
छू नहीं पा रही हूँ ...
अगर ये भ्रम है 
 तो भी यह
मेरे जीवन का
आधार है
 तुम्हारे होने के
अहसास ही को
 मैं 'जिए जा रही हूँ ...

8 comments:

  1. -------अतिसुन्दर जी.......
    सध गया रिश्ता, अब तोड़ दो मौन,
    अकेले-पन की ढ़िठाई छोड़ते क्यूं नहीं ?
    एकाकी जीवन में दूसरा, अपना ही है,
    तुम ये प्यार की इकाई तोड़ते क्यूं नहीं ?-राजेश

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  2. बहुत कोमल अहसास...रचना के भाव अंतस को छू गये...

    (word verification hata den to comment dene mein suvidha rahegee.)

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  3. कल 06/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  4. bahut -bahut shukriya ji ,ek achhi jaankaari ke liye ..........aabhar ......
    maine setting kar di hai.......

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  5. बहुत सुन्दर ,गहरे भाव लिए रचना....
    बधाई उपासना जी.

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  6. भ्रम में भी सुकून है ...

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  7. आपके अहसास बने रहें..सुकून बना रहे..सुंदर रचना, बधाई :)

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