प्रेम तुम,
छद्म रूप हो
माया हो
मोह हो
मरीचिका हो,
ना नज़र
आने वाली
अप्राप्य वस्तु से हो
मुट्ठी में बंद
रेत से हो
फिसलते जाते हो
पल-पल,
पतझड़ के
गिरते पत्ते की
तरह हो
जाड़े की धूप
जैसे हो
बिना गर्माहट लिए,
प्रेम तुम ,
कुछ भी हो सकते हो
बस
ख़ुशी नहीं हो सकते,
निराशा हो
आँखों की धुंधली होती
चमक की तरह.
प्रेम तुम
कहीं नहीं हो,
अगर हो तो
बस मृत्यु पथ पर ही।
छद्म रूप हो
माया हो
मोह हो
मरीचिका हो,
ना नज़र
आने वाली
अप्राप्य वस्तु से हो
मुट्ठी में बंद
रेत से हो
फिसलते जाते हो
पल-पल,
पतझड़ के
गिरते पत्ते की
तरह हो
जाड़े की धूप
जैसे हो
बिना गर्माहट लिए,
कुछ भी हो सकते हो
बस
ख़ुशी नहीं हो सकते,
निराशा हो
आँखों की धुंधली होती
चमक की तरह.
प्रेम तुम
कहीं नहीं हो,
अगर हो तो
बस मृत्यु पथ पर ही।
हमेशा की तरह एक और बेहतरीन पोस्ट इस शानदार पोस्ट के लिए धन्यवाद। .... Thanks for sharing this!! :) :)
ReplyDeleteन होते हुए भी प्रेम है हर जगह ... शायद साँसें हैं ...
ReplyDeleteनव वर्ष मंगलमय हो ...
सच कहां, प्रेम हैं पर मिलन कहीं नहीं हैं
ReplyDeleteनव वर्ष की मंगलकामनाएं
http://savanxxx.blogspot.in