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Wednesday, 24 February 2016

क्यूंकि तुम रेत पर कदमों के निशां जो छोड़ जाते हो !

 समुन्दर से
मन की लहरें
भागती है क्यूँ
बार -बार
किनारे की तरफ !

तम्हें तलाशती है !
सच में !
या
शायद उनको
मालूम है
तुम्हारा वहां आ जाना
बिन बताये
बिन आहट !

क्यूंकि  तुम
जाने - अनजाने में
रेत पर कदमों
के निशां
जो छोड़ जाते हो !


6 comments:

  1. क्या कहने......

    जाने - अनजाने में
    रेत पर कदमों
    के निशां
    जो छोड़ जाते हो !

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  2. सुन्दर रचना

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  3. रेत पे पड़े क़दमों से ही उनके आने का एहसास हो जाता है ....
    बहुत खूब ...

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