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Saturday, 20 June 2015

प्रेम तुम सिर्फ जीवन हो..

मैंने लिखा
प्रेम !
तुमने लिखा
विदाई !

प्रेम ,
तुम्हारा नाम
विदाई है क्या !

 चल पड़े
यूँ मुँह फेर के ,
पीठ घुमा कर।

एक बार भी
मेरी पुकार
क्या तुम
सुनोगे नहीं !

क्यूंकि
प्रेम का अर्थ
विदाई नहीं है।
केवल
प्रेम ही है,
मनुहार भी है।

लेकिन मनुहार
क्यों ,
किसलिए
तुम
 कोई  रूठे हो क्या मुझसे !

सच में रूठे हो !
फिर वंशी की धुन
किसे सुनाते हो !

प्रेम तुम
सिर्फ
जीवन हो  ,
मृत्यु नहीं !




Tuesday, 16 June 2015

मुस्कुराहटें छुपा देती है दिलों के राज़....

मुस्कुराइए !
कि मुस्कुराहटें
छुपा देती है दिलों के राज़।
बन सकते हैं अफ़साने
जिन बातों से
मुस्कुराहटें रोक देती हैं ,
लबों पर आती बात।
बिन कही बातें
कह जाती है
तो
कभी -कभी
बेबसी छुपा भी जाती है
ये मुस्कुराहटें।
देखिये बस

मुस्कुराते लबों को ही,
न झाँकिये आँखों में कभी
ये आँखे इन मुस्कुराहटों
राज़ भी खोल देती है
बस मुस्कुराइए और मुस्कुराते रहिये।

Monday, 8 June 2015

मैं तुम्हारे साथ हूँ !

ख़ामोशी को खामोश 
समझना 
भूल हो सकती है। 

कितनी हलचल 
अनगिनत ज्वार भाटे
समाये होते है।


आँखों में समाई नमी
जाने कितने समंदर 

छिपाए होते हैं।

नहीं टूट ते यह समंदर
ज्वार -भाटे ,
जब तक कोई
कंधे को छू कर ना कहे
कि
मैं तुम्हारे साथ हूँ !