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Thursday, 16 April 2015

प्रेम बस तुम हमेशा ही कायम हो

प्रेम
तुम आशा हो
मन की प्रिया हो
तन-मन को जो बांधे
वो एकता हो।

प्रेम
तुम नील -गगन की
नीलिमा में हो
मन की अपार  शांति में हो।

प्रेम
बस तुम हो
कभी -कभी ही नहीं
हमेशा ही कायम  हो।



6 comments:

  1. सच कहा है ... जहां कुछ भी नहीं वहां प्रेम तो है ही ...
    अच्छी रचना ...

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  2. प्रेम रंग रंगी पंक्तियां ...अनुपम

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  3. वाह, बहुत सुन्दर

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  4. प्रेम से ही तो सब हैं.
    प्रेम अमर हैं अमर प्रेम हैं...

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