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Tuesday, 25 February 2014

ऐसा भी होता है कभी !

कोई अपना ,
अनजान सा बन
चुपके से आ
मन के
आंगन में झांक जाये
और
पता भी ना चले

कोई अपना
बन अनजाना सा
बिन आहट
बिन परछाई आ कर चला जाये

ऐसा भी होता है कभी !
मन की गीली मिट्टी
पर पड़े
क़दमों के निशान
उस अनजाने के अपने होने की
गवाही दे ही जाते हैं


5 comments:

  1. sundar v sarthak rachna hetu badhai

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  2. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,आभार आपका।

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  3. उम्दा रचना ,बहुत खूब

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  4. बहुत ही लाजवाब

    RECENT POST.......खुशकिस्मत हूँ मैं

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