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Sunday, 2 February 2014

मत आजमाइए कभी अपनों के अपने होने को

मत आजमाइए
कभी अपनों के अपने होने का
उनके  प्रेम को,
अगर भरम है यह
कि वो अपने है
तो रखिये उनका भरम ही
 अपने होने का

ना झेल सकेगा कोई
सच्चाई
उतरेंगे जब मुखोटे ,
उन मुखोटों के पीछे के चेहरे
कितने भयावह होंगे
यह कौन सह पायेगा !

मुखोटा लगा
चेहरा ही अपने होने का
भरम देता है अगर,
मत झांकिए
मुखोटों के पार

जवाब दीजिये मुस्कान का ,
मुस्कान से ही
मत नापिये
मुस्कानों के इंच , परिधियाँ
और कोण

मत तोलिये  उनके
प्रेम से भरे विषैले  शब्दों को
अपने हृदय की  तराज़ू से ,
सहते रहिये
अपने हृदय पर शूल से


यह  अपनेपन भरम ही
 रखता है जिन्दा
हर किसी को
बिखर कर टूट जाओगे
अगर ये भरम न हो
मत आज़माओ कभी
 अपनों के अपनेपन को

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (03-02-2014) को "तत्काल चर्चा-आपके लिए" (चर्चा मंच-1512) पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सच कहा है ... अपने हैं तो मान लो की अपने हैं ... भ्र्ह्म टूटने न दो नहीं तो पछतावा होता है ...

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  3. सुंदर मनभावन रचना
    बसंत पंचमी की अनंत हार्दिक शुभकानाएं ---
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    बधाई -----

    आग्रह है--
    वाह !! बसंत--------

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  4. बहुत सुन्दर तथ्यात्मक कविता..

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