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Wednesday, 16 October 2013

मैं चाँद की राह ताकती हूँ या तुम्हारी ....

 रोज़ चाँद को निहारना
उसका इंतजार करना
जैसे तुम्हारे
आने की ही  राह  ताकना ...

जिस दिन
चाँद नहीं आता
फिर भी वो दिशा निहारती हूँ
 उस  दिन ,
मालूम है यहाँ नहीं तो
कहीं न कहीं तो निकला ही होगा
चाँद ,
दुनिया का कोई तो कोना
उसकी चांदनी से रोशन तो होगा ही ...

तुम भी चाँद की तरह ही तो हो
ना मालूम ,
मैं
चाँद की राह ताकती हूँ या
 तुम्हारी  ,
चंद्रमा  की बढती-घटती  कलाओं के साथ
झूलती रहती हूँ
आशा -निराशा का हिंडोला ,
फिर भी वो दिशा निहारती हूँ
जिस राह  से तुम कभी नहीं आओगे ...

चाँद तो अमावस के बाद आता है
और तुम !
शायद  हाँ ?
पर शायद नहीं ही आओगे
फिर भी चाँद के साथ
इंतजार तो करती ही हूँ  ....


10 comments:

  1. ati samvwdansheel rachna, bahut sundar

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  2. भाव में डूबी अति सुन्दर रचना.

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  3. आपकी इस रचना को निविया की नजर से "http://hindibloggerscaupala.blogspot.com/" दिन शुक्रवार में शामिल किया गया .कृपया अवलोकनार्थ पधारे

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  4. बहुत सुन्दर रचना

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  5. सुंदर भाव, कोमल अभिव्यक्ति...

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  6. बहुत बढिया..सुन्दर रचना...

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  7. ...........सुन्दर रचना ::))

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