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Friday, 19 July 2013

यह दरख्त ना छाँव देता है ना राहत ...!

यादों के दरख्तों की पत्तियां 

 ना कभी पीली पड़ती है 

ना  ही गिर कर 
यहाँ -वहां बिखरती है ......



हर रोज़ एक नयी पत्ती 

उभर आती है याद की तरह 

दरख्त को अपने लपेटे 

में लेती हुयी ...


गर छू भी लो 

इन पत्तियों को 

छिल  जाते है घाव

रिस पड़ता है यादों का लहू ...


यह दरख्त  ना छाँव देता है 

ना राहत ...!

कुछ दे सुस्ताना भी चाहो 

यादों की धूप में मन 

झुलसता ही जाता है ...



15 comments:

  1. झुलसती यादें ... बहुत खूब ।

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  2. बहुत सुन्दर

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  3. किसी कवि की रचना देखूं !
    दर्द उभरता , दिखता है !
    प्यार, नेह दुर्लभ से लगते ,
    क्लेश हर जगह मिलता है !
    क्या शिक्षा विद्वानों को दूं ,टिप्पणियों में, रोते गीत !
    निज रचनाएं ,दर्पण मन का, दर्द समझते मेरे गीत !

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  4. वाह बहुत बढिया, सुन्दर रचना..

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  5. अच्छी रचना, बहुत सुंदर

    मेरी कोशिश होती है कि टीवी की दुनिया की असल तस्वीर आपके सामने रहे। मेरे ब्लाग TV स्टेशन पर जरूर पढिए।
    MEDIA : अब तो हद हो गई !
    http://tvstationlive.blogspot.in/2013/07/media.html#comment-form

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  6. बहुत सुंदर अनुभूति
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    बधाई

    आग्रह है
    केक्ट्स में तभी तो खिलेंगे--------

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  7. नमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (21 -07-2013) के चर्चा मंच -1313 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

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  8. खुबसूरत भावो की अभिवय्क्ति…।

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  9. यादों की धूप में मन झुलसता ही जाता है ... बहुत सुन्दर अभिवक्ति, बधाई आप को

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  10. यादों के पतझड़ में पेड़ से क्या मिलेगा ?सुन्दर अभिवक्ति!
    latest post क्या अर्पण करूँ !
    latest post सुख -दुःख

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  11. यादों की पत्तियों पे कभी पतझड नहीं आता .... ताज़ा रहती हैं ये ...
    खुशबू लिए ...

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  12. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार २६ मई 2016 को में शामिल किया गया है।
    http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमत्रित है ......धन्यवाद !

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