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Tuesday, 18 June 2013

मरने से पहले कई-कई बार मरना क्यूँ ....

मर -मर के जीते है
 हम ,
हर रोज़
जीने के लिए ...

बस एक पल
जीने के लिए
ना जाने कितने
पल मरते हैं हम ...

 हुआ जब जन्म
तभी तय हुआ
मरने का दिन ,
तय नहीं जीने के दिन ...

ना जाने कितने
दिन है जीने के
यही सोच ,
हर दिन मरते हैं हम ...

कितने रंगों से सजा
ये जीवन
आशंकाओं के काले रंग
से रंगना क्यूँ ....

मरने से पहले
कई-कई बार मरना क्यूँ
जब तय है मरने का दिन ,
तो क्यूँ ना
हर पल -हर दिन जीवन का
भरपूर जियें हम ...

( चित्र गूगल से साभार )









16 comments:

  1. हर पल जीवन को भरपूर जिये हम,,,

    बहुत सुंदर रचना,,,

    RECENT POST : तड़प,

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  2. जीवन मृत्यु संग अद्भुत भाव

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  3. I highly appreciate the truth of life which is nicely described in your poetry which I highly appreciate.

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  4. Jab log isko jan jaain to dukh ka namo nisan mit jay.

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  5. हुआ जब जन्म
    तय हुआ मरने का दिन ......

    --तो फिर ..नहीं तय जीने के दिन ...कैसे ....तथ्यात्मक त्रुटि है ...धीरेन्द्र जी ...

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  6. समझने वाली बात है

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    1. जब मरने का दिन तय हुआ तो जीने के दिन तो अपने आप तय होगये ...यह अलग तथ्य है कि मनुष्य को दोनों में से कोइ भी ज्ञात नहीं है ..परन्तु निश्चित तो है ही अतः तथ्यात्मक दोष तो है ही कविता में अपितु अस्पष्टता दोष भी है ...
      --- न जाने कितने दिन हैं जीने के ...यह सोच कर हम हर दिन नहीं मरते अपितु यदि हम यह सोचें तो सत्कर्म करने को प्रस्तुत होजाएं ....और मस्ती की ज़िंदगी जीने लगेंगे ...

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  7. जीवन की सार्थक प्रस्तुति

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  8. जितना जियो, दिल से जियो....बहुत सुन्दर

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  9. उर्जा से भरपूर रचना ... बधाई

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  10. सार्थक सन्देश देती बेहतरीन प्रस्तुति ! बहुत सुंदर !

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  11. बेहतरीन...भावपूर्ण...बधाई...

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  12. सुन्दर भाव...बहुत अच्छी रचना...बहुत-बहुत बधाई...

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