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Thursday, 9 May 2013

हम बेटियों का घर ही धूप में क्यूँ ...!



सहसा उसे

 नानी का कथन

 याद आ गया 

"तेरा ससुराल तो

 धूप में ही बाँध देंगे...!"

जब उसने देखा 

दूर रेगिस्तान में

एक अकेला घर 

जिस पर ना कोई साया 

ना ही किसी 

दरख्त की शीतल छाया ,

एक छोटी सी 

आस की बदली को तरसता

वह घर .......!
और उसमे खड़ी एक औरत ...

तो क्या इसकी नानी भी

 यही कहती थी...?

पर नानी मेरा घर ही 

धूप में क्यूँ ,भाई का

क्यूँ नहीं ....!

शरारत तो वो भी करता है ...

इस निरुत्तर प्रश्न का 

जवाब तो उसने

समय से पा लिया

पर आज फिर 

नानी से यही प्रश्न करने को

मन हो आया
"

हम बेटियों का घर ही धूप में क्यूँ ...!


(चित्र गूगल से साभार )

19 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुतीकरण,आभार.

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    1. बहुत शुक्रिया राजेन्द्र कुमार जी

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    1. सही बात कही आपने नीलिमा जी ....बहुत शुक्रिया

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  3. एक अनुत्तरित प्रश्न

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  4. बहुत सुन्दर ...हम बेटियां ही क्यों .......क्या खता की हमने ....
    बहुत सुन्दर लिखा ..उपासना जी ..

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  5. हम बेटियों का घर धुप मे क्यों ?
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

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  7. आज भी इंतजार है उत्तर का...बहुत सुन्दर..

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  8. बहुत सुन्दर उपासना जी

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  9. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (10-05-2013) के "मेरी विवशता" (चर्चा मंच-1240) पर भी होगी!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  10. सच में ऐसा क्यों !!
    मार्मिक अभिव्यक्ति !

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  11. ना नानी ना और कोई इसका जवाब दे सकता है!

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  12. sahi kaha apne....par uttar kisi kay pass nahi

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  13. बिल्‍कुल सही कहा आपने .... बेहतरीन प्रस्‍तुति

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  14. सब सब के लिए नहीं होता और सब सब कुछ पचा भी नहीं पाते आपकी गरिमा धूप को सहा लेने के ही कारन बनी है ये सांत्वना नहीं अकाट्य सत्य है भाई की औकात ही नहीं की वो गर्मी को सहन कर सके , पानी प्यास बुझाता है और आग जलाता है हम उससे खाना पकाते हैं

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