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Thursday, 28 March 2013

अब तू क्यूँ मचलता है मन .....


मन फिर मचल गया
जरा मुड कर तो
 देख कोई है शायद
 अभी भी तेरे इंतज़ार में ...

नज़र आया 
दूर तक वीराना ही 
कोई तो पुकारेगा
 इस वीराने में ...

 एक बार फिर 
से तो मुड कर देख जरा 
मन ...

अब तू क्यूँ मचलता है 
कौन है 
जो तेरा इंतज़ार करे ,
तुझे पुकारे .....

तूने ही तो तोड़ डाले थे 
सारे तार ,
सारे राह उलझा दिए थे 
अब कौनसी राह ढूंढता है ...

खिले फूलों 
को तूने ही बिखराया था ,
अब किस बहार का इंतज़ार है तुझे ... 

अब तू क्यूँ मचलता है 
मन 
किसको पुकारता है अब
 इस वीराने में ........

14 comments:

  1. हृदयस्पर्शी भावपूर्ण प्रस्तुति.
    सुन्दर प्रस्तुति. आपको होली की हार्दिक शुभ कामना .



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  2. भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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  3. मन के अस्थिरता का वर्णन करने वाली सार्थक प्रस्तुति है- अब तू क्यूं मचलता है मन। मनुष्य के मन की यहीं विशेषता होती है कि मचले। आपने बडी भावुकता के साथ मन को ही पूछा कि भई बार-बार मचलते क्यों हो? यहीं भावनामयता, अनजानापन, बचपना कविता की ताकत है।

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  4. अंतर्मन के द्वन्द को शब्द देती भावपूर्ण रचना... आभार

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  5. बहुत भावपूर्ण मर्मस्पर्शी रचना...

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  6. कोमल भावपूर्ण रचना..

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  7. द्वन्द भरी दिल की आवाज -क्या करे क्या ना करे ,सुन्दर अभिव्यक्ति
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  8. वाह बहुत सुंदर रचना
    बधाई

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  9. दिल क्या करे ...दुविधा में है .........अच्छी रचना .......

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  10. मर्मस्पर्शी भाव पूर्ण एवम सुन्दर प्रस्तुति

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  11. बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति.

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