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Tuesday, 20 March 2012

ख़त

 बरसों बाद 
तुमको देखा तो ये 
ख़याल आया ...

 'कि  जिन्दगी धूप
तुम घना साया !'

नहीं ऐसा तो नहीं सोचा मैंने !
जिंदगी  में ,
 विटामिन- डी के लिए
धूप की भी तो जरुरत 
होती है !

तुम को देखा तो 
मुझे ख्याल आया 
उन खतों का
जो तुमने 
 लिखे थे कभी मुझे ...

वे खत
 मैंने अपनी यादों में
और खज़ाने की तरह 
एक संदुकची में संभाल कर 
रखे है
देख कर उनको 
तुम्हें भी याद कर लिया करती हूँ

तुमको देखा तो
अब फिर से ख्याल आया 
जो मैंने तुम्हें ख़त लिखे थे 
वे  मुझे वापस लौटा दो ...

समझने की कोशिश तो 
करो जरा मुझे ...!!
देखो गलत ना समझो मुझे 
वे ख़त  अब तुम्हारे भी किस
 काम के है !


अरे !
महंगे होते जा रहे है 
गैस -सिलेंडर 
अब  चूल्हा जलाने के काम 
 आयेंगे ना 
तुम्हारे और मेरे ख़त ...!




4 comments:

  1. yathaarth jeevan kaa een panktiyon me bade sundar dhang se samjhaayaa gayaa hai , uttam rachnaa

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  2. हा हा हा मजा आ गया ,,खत का समुचित उपयोग होगा पढ़ कर ।

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  3. hahahaha....Badia....or sach hai .....ise kehte hain SADUPYOG.....

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  4. बहुत खूब...
    कहीं सूरज धूप न वापस मांगने लगे....

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