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Tuesday, 4 December 2018

छोटा ही है, उदासियों का कैनवास..


बना लीजिये
 कैनवास ,
उदासियों की चादर को।

जेबों में भरे
चमकीले रंगो से
सजा दीजिये
उस पर
चाँद और तारे।

निहारिये
उस पर
चांदनी में नहाये
ऊँचे पहाड़
और
कल-कल बहती नदियाँ।

उकेरिये 
आशाओं के
उम्मीदों के
सप्तऋषि ,
ग्रह -नक्षत्र भी।

छोटा ही है 
उदासियों का कैनवास,
जैसे कोई
 काली रात !

जरा सी देर और निहारिये ,
भोर का तारा
खुद ही टिमटिमाएगा,
खुद ही सज जायेगा
मन के रंगो से
सूरज की लालिमा से
बिना उकेरे ही।


 

Saturday, 3 November 2018

एक पहचानी सी महक है..

आज किसी के  आने की आहट सी है ,
मन जरा सा बैचन भी और उत्सुक भी है ..

जाने गुलाब खिलेगा या जूही का फूल ,
हवाओं में एक पहचानी महक सी है ...

Tuesday, 30 October 2018

अलाव तो जलाओ

सर्द मौसम
या सर्द होते रिश्ते
जमता लहू
अलाव तो जलाओ
प्रेम व विश्वास का

प्यारी बिटिया

रूप सुहाना
मधुर है मुस्कान
प्यारी बिटिया
आँगन की रौनक
कलेजे की ठंडक

Thursday, 13 September 2018

यह जीवन है...

ये रिश्ते भी
अजीब होते हैं..

कुछ अपने हो कर
भी अपने नहीँ लगते ..

कुछ  पराए हो कर
भी पराए नही लगते ..

कुछ साथ हो कर भी
अजनबी लगते है ..

कुछ अजनबी भी
अपने लगते है ...

यह जीवन है,
अपनों से परायों,
परायों से अपनों के बीच
चलता रहता है ...

Thursday, 23 August 2018

समय के पदचिन्ह...

कुछ सुखद 
कुछ दुःखद 
कुछ अनुकरणीय 

खुरदरी -कठोर 
अनुभवों की जमीन पर 
जाता हुआ समय 

छोड़ जाता है 
पदचिन्ह अपने

समय के ये 
पदचिन्ह 
धुंधलाते नहीं 
बिखरते नहीं 
बे-रंग भी नहीं होते 

कचोटते हैं 
ह्रदय -तल को 
अडिग -अविरल 
लिए स्थायित्व। 






Monday, 23 April 2018

प्रेम तुम तब भी रहोगे

एक दिन
जब
यह धरा नहीं रहेगी,
धरा को घेर लेने वाले
ग्रह-नक्षत्र
नहीं रहेंगे ,
धरा को नापने वाले
दोनों ध्रुव
नहीं रहेंगे ,
धरा को
ढ़क लेने वाले
वृक्ष, नदियाँ - सागर
भी नहीं रहेंगे ,
प्रेम
तुम तब भी रहोगे |

Sunday, 1 April 2018

फिर भी इंतज़ार है ..



ना मिलने के
 दिन याद ,
ना ही बिछड़ने के
 दिन याद ,
याद रहे तो
 बस तुम।

शायद ,
जाते हुए
पतझड़ में
बहार से
आये थे तुम।
जाती हुयी
बहार में
चले भी गए थे।

यह मिलना -बिछुड़ना ,
दशकों की
बिछुड़न है
या
सदियों की ही
बिछुड़न है।
या हमेशा-हमेशा की।

फिर भी
इंतज़ार है
एक और
फिर से जाते हुए
पतझड़ में ,
आती हुई बहार का।








Wednesday, 21 March 2018

जख्म तो दिलों पर हरे रहते ही हैं

एक पत्ता
जो गिरा  है
अभी शाख से

बेशक 
पीला और जर्जर था.
फिर भी 
उसका  निशान बाकी है
शाख पर
अभी भी।

निशान तो
नहीं मिटते न,
किसी के चले जाने पर। 

जख्म तो
दिलों पर
हरे रहते ही हैं
कभी-कभी 
या 
सदा के लिए।