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Tuesday, 4 December 2018

छोटा ही है, उदासियों का कैनवास..


बना लीजिये
 कैनवास ,
उदासियों की चादर को।

जेबों में भरे
चमकीले रंगो से
सजा दीजिये
उस पर
चाँद और तारे।

निहारिये
उस पर
चांदनी में नहाये
ऊँचे पहाड़
और
कल-कल बहती नदियाँ।

उकेरिये 
आशाओं के
उम्मीदों के
सप्तऋषि ,
ग्रह -नक्षत्र भी।

छोटा ही है 
उदासियों का कैनवास,
जैसे कोई
 काली रात !

जरा सी देर और निहारिये ,
भोर का तारा
खुद ही टिमटिमाएगा,
खुद ही सज जायेगा
मन के रंगो से
सूरज की लालिमा से
बिना उकेरे ही।