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Thursday, 21 December 2017

देह के जाने के बाद

देह के पञ्च तत्वों में 
विलीन हो जाने पर भी
खोजती है
उसे , उस घर का आँगन
उस घर की दीवारें
उस घर का छोटा सा आसमान,
सुनना चाहती है
उसके कदमों की आहट भी...
वह नहीं लौटेगी
यह सच मालूम है फिर भी,
तो
क्या सच में भुला दिया जाता है
किसी देह को ,
उसका पंच तत्वों में
विलीन हो जाने पर...
शायद नहीं,
क्योंकि
देह से विलग आत्मा
समा जाती है
घर के कोने-कोने में,
कण-कण में
बरसाती है प्रेम और स्नेह का
आशीर्वाद |

Monday, 20 November 2017

ਰੱਬ ਵਰਗੀ ਹੈ ਮਾਂ ਮੇਰੀ...( रब जैसी है माँ मेरी )

ਧਰਤੀ ਮਾਂ ਵਰਗੀ ਹੈ  ਮਾਂ ਮੇਰੀ।

ਜਿਵੇਂ ਘੁੱਮਦੀ ਹੈ
ਧਰਤੀ ,
ਆਪਣੀ ਹੀ ਧੁਰਿ ਤੇ।

ਇੰਝ  ਹੀ
ਆਪਣੇ ਘਰ ਦੀ ਧੂਰੀ  ਤੇ
 ਘੁੱਮਦੀ ਹੈ
ਮੇਰੀ ਮਾਂ ਵੀ।

ਬੱਦਲਾਂ ਵਰਗੀ ਹੈ ਮਾਂ ਮੇਰੀ।

ਜਿਵੇਂ ਨਿੱਘੇ ਸੂਰਜ ਨੂੰ
ਢੱਕ ਲੈਂਦਾ ਹੈ
ਬਚਾਉਂਦਾ ਹੈ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ
ਗਰਮੀ ਤੋਂ।

ਇੰਝ ਹੀ ਮੇਰੀ ਮਾਂ ਵੀ
ਬਚਾਉਂਦੀ ਹੈ ਮੈਂਨੂੰ ,
ਦੁਨੀਆਂ ਦੀ ਹਰ
ਬੁਰਾਈ ਤੋਂ।

ਰੱਬ ਵਰਗੀ ਹੈ ਮਾਂ ਮੇਰੀ।

ਜਿਵੇਂ ਰੱਬ
ਭੁੱਲ ਜਾਂਦਾ ਹੈ
ਮਨੁੱਖੀ ਭੁੱਲਾਂ।

ਇੰਝ ਹੀ
ਮੇਰੀ ਮਾਂ ਵੀ
ਲਗਾ ਲਿੰਦੀ ਹੈ ਮੈਂਨੂੰ ਗੱਲ,
ਭੁੱਲ ਜਾਂਦੀ ਹੈ
ਮੇਰੀ ਹਰ ਗ਼ਲਤੀ।


धरती माँ जैसी है माँ मेरी।

जैसे धरती घूमती  है
अपनी ही
 धुरी पर।

वैसे ही
मेरी माँ भी
घूमती है
अपने परिवार की धुरी पर।

बादलों जैसी है माँ मेरी।

जैसे बादल
ढक लेते हैं
गर्म सूरज को
बचाता है गर्मी से।

वैसे ही मेरी माँ भी
बचाती है मुझे ,
दुनिया की हर बुराई से।

रब जैसी है माँ मेरी।

जैसे रब
भूल जाता है
मनुष्यों की भूलें।

वैसे ही
मेरी माँ भी
लगा लेती है मुझे गले
भूल जाती है
मेरी हर गलती।




Monday, 6 November 2017

अब नहीं लौटेगा आहत मन..

चले ही जाते हैं
जाने वाले
एक-न -एक दिन ,
दामन छुड़ा कर।

क्या जाने वो ,
कोई
ढूंढता है
उसे ,
दर-दर ,
भटकता है
दर-ब -दर।

क्यों सोचता है
फिर
दामन छुड़ा जाने वाला
क्यों तलाशता है
रुक कर
क़दमों के निशान

क्यों सुनता है
ना आने वाली
कभी भी
उन कदमों की आहट।

 मत ढूंढ अब ,
उसे ,
जिससे दामन छुड़ाया था कभी।

मत सुन
रुक कर आहट ,
अब नहीं लौटेगा
आहत मन।

आहतमना
अब विलीन होने को है।
समा जाने को आतुर है
कण -कण हो कर
इस ब्रह्माण्ड में।





Tuesday, 24 October 2017

भटकती है वह यूँ ही कस्तूरी मृग सी

वजूद स्त्रियों का
खण्ड -खण्ड
बिखरा-बिखरा सा। 

मायके के देश  से ,
ससुराल के परदेश में 
एक सरहद से 
दूसरी सरहद तक। 

कितनी किरचें 
कितनी छीलन बचती है 
वजूद को समेटने में। 

छिले हृदय में 
रिसती है 
धीरे -धीरे 
वजूद बचाती। 
ढूंढती,
और समेटती। 

जलती हैं 
धीरे-धीरे 
बिना अग्नि - धुएं  के
राख हो जाने तक।  

धंसती है 
धीरे -धीरे 
पोली जमीन में ,
नहीं मिलती ,
थाह फिर भी 
अपने वजूद की। 

नहीं मिलती थाह उसे 
जमीन में भी ,
क्यूंकि उसे नहीं मालूम 
उसकी जगह है 
ऊँचे आसमानों में। 

इस सरहद से 
उस सरहद की उलझन में 
 भूल गई है 
अपने पंख कहीं रख कर। 

 भटकती है 
वह यूँ ही 
कस्तूरी मृग सी। 







Friday, 8 September 2017

यह जिंदगी

यह जिन्दगी,
 बंधी है , सम्भाली सी 
एक नियत  दायरे में ,
या
खुल कर 
बिखरने को आतुर है ।

चुप रहें ,
बात करें ,
हंसे या
मुस्कुराएं....

सही राह 
चलते रहना है
या 
नई पगडंडियां भी
आजमाना है ।

यह जिंदगी,
बदहवास सी
भटकन ही तो है !
 ।

Saturday, 2 September 2017

शायद एक जैसी ही है

झोंपड़ी में जन्मे बच्चे 
और
 नाली के पास 
खिले फूल की 
तकदीर ,
 शायद
एक जैसी ही है ....

दोनों का जन्म 

बस यूँ ही हो जाता है
 बिना
किसी दुआ ,इबादत ,
मन्नत मांगे ...


दोनों को ही 

देखा जाता है ,
दूर से ही 
हिकारत से ,
एक में झोंपड़ी की
दूसरे में नाली की बू
जो आती है ...


 दोनों ही एक दिन ,

इस दुनिया से 
चले जाते हैं 
पहला 
 शब्द -बाणों ,
ज़माने की नफरत को
सहते -सहते ....

दूसरा 

किसी वाहन की
चपेट में आकर ...

Monday, 14 August 2017

इन चुप्पियों के समन्दरों में...

चुप है हवाएँ ,
चुप है धरती ,
चुप ही है आसमान ,
और
चुप से  हैं
उड़ाने भरते पंछी...

पसरी है
दूर तलक चुप्पियाँ।

इन घुटन भरी
 चुप्पियों के समन्दरों में.
छिपे हैं,
जाने कितने ही ज्वार...

 और
छुपी है
कितनी ही
बरसने को आतुर
घुटी -घुटी सी घटाएं...


Wednesday, 8 March 2017

एक दिन

एक दिन
थम गई थी
घूमते-घूमते
जब धरा,

उस दिन
रुक गई थी
सहसा ही
चलते-चलते
जब हवा,

उसी दिन ही
सिमटा सा लगा
दूर तक फैला ,
आसमां..

ऐसे खामोश
थमे,रुके, सिमटे
जहां में
वह कैसा जलजला था ,
डगमगाए जाता था
मुझे...

शायद
स्पंदन थी
मेरे ह्रदय की
जो कंपन बनी थी
या कुछ और था..!


Tuesday, 17 January 2017

ਜਿਵੇਂ ਨਿੱਕੇ -ਨਿੱਕੇ ਆਲ੍ਹਣੇ ( जैसे छोटे -छोटे कोटर )

ਇੱਕ ਮਨ ਦੇ ਵਿੱਚ
ਕਈ ਸਾਰੇ  ਮਨ ,
ਜਿਵੇਂ
ਨਿੱਕੇ -ਨਿੱਕੇ
ਆਲ੍ਹਣੇ।

ਹਰੇਕ ਮਨ ਦੇ
ਨਿਆਰੇ -ਨਿਆਰੇ
ਠੋਰ -ਠਿਕਾਣੇ।

ਇਕ ਮਨ ਕਹਿੰਦਾ
ਥੋੜਾ ਜਿਹਾ
ਹੰਸ ਵੀ ਲਿਆ ਕਰ।

ਦੂਜਾ ਮਨ
ਬੋਲ ਪੈਂਦਾ ਹੈ ,
ਮੇਰਾ ਪੱਲਾ ਫੜੂ ਕੇ

ਕੀ ਰੱਖੀਆ ਹੈ
ਦੁਨੀਆ ਦੇ
ਹਾਸੇ ਚ ,
ਝੁੱਟੀ  ਦੁਨੀਆ ਹੈ
ਤੇ ਝੂੱਟੇ ਹੈ
ਇਸਦੇ ਹਾਸੇ।

ਇੱਕ ਮਨ ਚ
ਇਕ ਛੋਟਾ ਜਿਹਾ
ਦੀਵਾ ਜੱਗਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ
ਇੱਕ ਆਸ ਦਾ,
ਉੱਮੀਦ ਦਾ,
ਭਾਵੇਂ ਝੁੱਟੀ ਹੀ ਹੋਵੇਂ।

ਇੱਕ ਮਨ
ਸਿਆਹੀ ਵਾਂਗ
ਜਿਸ ਵਿੱਚ
ਅੰਧਿਆਰਾ ਭਰਿਆ ਹੈ।

ਮਨ ਦੇ
ਇੰਨਾ ਆਲ੍ਹਣਿਆਂ ਚ
ਵੜਦੇ  - ਨਿੱਕਲਦੇ,
ਦੁਨੀਆ ਦੇ
ਹਾਸੇ -ਉਦਾਸੀਆਂ ਦੀ
ਗਹਿਰਾਈ ਵਿੱਚ
ਡੁੱਬਦੇ -ਪਾਰ ਉੱਤਰਦੇ ਹੀ
  ਜਿੰਦਗੀ ਬਤੀਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ।


एक मन में
कई सारे मन है
जैसे छोटे -छोटे
कोटर।

हर मन के
अलग-अलग
ठौर -ठिकाने।

एक मन कहता है
थोड़ा खुश भी
 रहा करो

दूसरा मन
बोल पड़ता है
मेरा पल्ला थाम

क्या रखा है
 दुनिया की
 ख़ुशी में
झूठी दुनिया है
और झूठी ही खुशियां।

एक मन में
एक छोटा सा दीया जलता है
आशा का
उम्मीद का
चाहे झूठी ही सही।

एक मन
काली सियाही लिए
जैसे रात का अँधियारा।

मन के
इन कोटरों में
रहते - निकलते ,
दुनियां की
खुशियों -उदासियों की
गहराइयों में
डूबते - पार उतरते ही
जीवन व्यतीत होता जाता है।