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Sunday 24 August 2014

तुम्हारा एक नाम रखूं ?

तुम्हारा
 एक नाम रखूं ?
क्या नाम रखूं
 तुम्हारा !
प्रेम !
नहीं तुम्हारा नाम प्रेम नहीं !
वो प्रेम ही क्या
जो छुपाया जाये।

नफरत !
नहीं नफरत भी नहीं !
मेरे शब्दकोष में
यह शब्द ही नहीं है।

इंतज़ार !
नहीं इंतज़ार भी नहीं !
साथ रहने वालों का
कैसा इंतज़ार।

धोखा !
हाँ तुम धोखा ही हो ,
छलिया हो ,
भ्रम ही तो हो
यही नाम रखूंगी तुम्हारा।

जिक्र होगा जब कभी
धोखे का
तुम्हारा ही नाम आएगा
भ्रम में रहेगा सारा संसार
और हर बार छला जायेगा। 

Saturday 16 August 2014

मेरे पास अभी भी......

तुम्हारे प्यार को मैंने
 पिंजरे में बंद कर
पाला चिड़िया की तरह
बरसों तक आशा के दाने ,
भ्रम का पानी पिलाती रही
कि तुम कभी तो आओगे ...

 यूँ ही तुम्हारे अहसाह को
अपने आस-पास रेशमी तारों
का जाल सा बुनती रही ...

 कर दिया मुक्त
लो आज मैंने आज
इस चिड़िया को
उड़ा दिया दूर गगन में....

लेकिन
मैंने  परों में थोड़े से रेशमी
तार भी उलझा दिए है ,
क्यूँ कि
मेरे पास अभी भी कुछ आशा के
दाने और भ्रम का पानी बचा है .