Friday 30 October 2015

कहाँ खोजूँ तुम्हें ...

तुम्हें सोचा
तो सोचा,
देखूं एक बार तुम्हें।

लेकिन
जाने कहाँ
छुप गए हो
तुम तो कहीं !

फिर  देखूं तो
कहाँ देखूं ,
कहाँ खोजूँ तुम्हें ।

बिखरा तो है
बेशक़
तुम्हारा वजूद,
यहाँ-वहां।

मूर्त रूप
चाहूँ देखना तुम्हें,
फिर
कहाँ देखूँ !

खोजना जो चाहा
चाँद में तुम्हें।

सोचा मैंने  चाँद को
 तुम भी तो
देखते होंगे।

तुम चाँद में भी नहीं थे
 लेकिन,
क्यूंकि
अमावस की रात सी
तकदीर है मेरी।

Friday 16 October 2015

मछलियाँ और स्त्रियां...

मछलियाँ और स्त्रियां
कितना साम्य है
दोनों ही में !

मछलियाँ पानी में रहती है
और
पानी भरे रहती है आँखों में
स्त्रियां !

बिन पानी छटपटाती है
मछलियाँ
और
आँखों का पानी पोंछ
मुस्कुराती है स्त्रियां।

जाल में फँसा कर
मार दी जाती है मछलियाँ
और
रीत -रिवाज़,मोह - जाल  में फंस
खुद ही
ख़त्म हो जाती है स्त्रियां।

अथाह-विशाल सागर है
मछलियों का घर
तलाशती है फिर भी
एक कोना कहीं।

स्त्रियों को
बना जग-जननी,
सौंप दिया है सारा संसार,
खोजती है फिर भी
अपनी जगह,अपनी जड़ें।